भारत की खेती पर एक नया खतरा मंडरा रहा है, और इसका नाम है सतही ओजोन प्रदूषण। आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने अपने ताजा शोध में चेतावनी दी है कि बढ़ता ओजोन प्रदूषण देश की प्रमुख फसलों—गेहूं, धान और मक्का—की पैदावार को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।
यह न केवल किसानों की आजीविका के लिए खतरा है, बल्कि देश और दुनिया की खाद्य सुरक्षा को भी जोखिम में डाल सकता है। आइए, इस समस्या को आसान शब्दों में समझते हैं और जानते हैं कि इसका समाधान क्या हो सकता है।
ओजोन प्रदूषण क्या है?
सतही ओजोन (ग्राउंड-लेवल ओजोन) हवा में मौजूद एक जहरीला प्रदूषक है। यह तब बनता है जब वाहनों, फैक्ट्रियों और अन्य मानवीय गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक (जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) सूरज की रोशनी के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं। यह ओजोन पौधों के लिए बेहद हानिकारक है, क्योंकि:
- यह पौधों की पत्तियों को जलाता है, जिससे वे भूरी या पीली पड़ जाती हैं।
- पौधों की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है।
- पौधों को कार्बन डाइऑक्साइड सोखने में दिक्कत होती है, जो उनके विकास के लिए जरूरी है।
नतीजा? फसलों की पैदावार कम हो जाती है, और किसानों को भारी नुकसान होता है।
आईआईटी खड़गपुर का शोध क्या कहता है?
आईआईटी खड़गपुर के सेंटर फॉर ओशियन, रिवर, एटमॉस्फेयर एंड लैंड साइंसेज में प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टिपुरथ की अगुआई में हुए इस शोध ने चौंकाने वाले तथ्य सामने लाए हैं। वैज्ञानिकों ने जलवायु मॉडल (CMIP6) के आंकड़ों और ऐतिहासिक रुझानों का अध्ययन किया। उन्होंने भविष्य के अनुमानों के आधार पर देखा कि अगर ओजोन प्रदूषण को नहीं रोका गया, तो इसका फसलों पर क्या असर होगा। नतीजे डराने वाले हैं:
- गेहूं: अगर प्रदूषण बढ़ता रहा, तो गेहूं की पैदावार में 20% तक की कमी आ सकती है।
- धान और मक्का: इन फसलों की पैदावार में 7% तक की गिरावट का खतरा है।
- सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र: गंगा के मैदानी इलाके (उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल) और मध्य भारत (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़)। इन क्षेत्रों में ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से 6 गुना ज्यादा हो सकता है।
यह शोध जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है और इसे नेचर जियोसाइंस जैसे अन्य अध्ययनों ने भी समर्थन दिया है।
क्यों है यह बड़ा खतरा?
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक देश है। यहाँ की फसलें न केवल देश की 140 करोड़ आबादी को खिलाती हैं, बल्कि कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को भी निर्यात की जाती हैं। ओजोन प्रदूषण से फसलों की पैदावार कम होने का मतलब है:
- खाद्य संकट: भोजन की कमी बढ़ सकती है, जिससे कीमतें आसमान छू सकती हैं।
- किसानों की मुश्किलें: कम पैदावार से किसानों की आय घटेगी, और उनकी आर्थिक स्थिति खराब होगी।
- वैश्विक प्रभाव: भारत का खाद्यान्न निर्यात प्रभावित होगा, जिससे गरीब देशों में भुखमरी बढ़ सकती है।
- सतत विकास लक्ष्य (SDG): संयुक्त राष्ट्र के दो बड़े लक्ष्य—गरीबी उन्मूलन (SDG 1) और सबके लिए भोजन (SDG 2)—खतरे में पड़ सकते हैं।
ग्रामीण इलाकों में भी खतरा
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि प्रदूषण सिर्फ शहरों की समस्या है, लेकिन यह शोध बताता है कि ग्रामीण इलाकों में भी ओजोन प्रदूषण बढ़ रहा है। गंगा के मैदानी इलाके और मध्य भारत, जो देश का “अन्न भंडार” कहलाते हैं, अब इस प्रदूषण की चपेट में हैं। इसका कारण है:
- पास के शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों से आने वाला प्रदूषण।
- खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन और डीजल पंप, जो प्रदूषक छोड़ते हैं।
- पराली जलाने जैसी गतिविधियाँ, जो हवा को और जहरीला बनाती हैं।
शहरों में भी बढ़ रहा ओजोन
हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की रिपोर्ट “एयर क्वालिटी ट्रैकर: एन इनविजिबल थ्रेट” ने भी चेतावनी दी है। 2024 की गर्मियों में भारत के 10 बड़े शहरों में सतही ओजोन का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा। दिल्ली इस मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित रही, जहां हवा जहरीली हो गई। यह ओजोन न केवल फसलों, बल्कि इंसानों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है, क्योंकि यह फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है और सांस की बीमारियों को बढ़ाता है।
क्या है समाधान?
शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने ओजोन प्रदूषण से निपटने के लिए कई सुझाव दिए हैं:
- ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी:
- भारत का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) अभी सिर्फ शहरों पर केंद्रित है। इसे ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों तक बढ़ाने की जरूरत है।
- खेतों के पास ओजोन मापने वाले स्टेशन लगाए जाएं।
- प्रदूषण नियंत्रण:
- फैक्ट्रियों और वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए सख्त नियम लागू हों।
- पराली जलाने पर रोक और इसके विकल्प, जैसे बायोगैस प्लांट, को बढ़ावा देना।
- स्वच्छ ईंधन और बिजली से चलने वाले कृषि उपकरणों का इस्तेमाल।
- कृषि तकनीक:
- ऐसी फसलें विकसित करें, जो ओजोन के असर को झेल सकें।
- खेती में रसायनों का कम इस्तेमाल और जैविक खेती को बढ़ावा देना।
- जागरूकता:
- किसानों को ओजोन प्रदूषण के खतरों के बारे में बताना।
- स्कूलों और समुदायों में स्वच्छ हवा के लिए अभियान चलाना।
- नीतिगत बदलाव:
- सरकार को ओजोन प्रदूषण रोकने के लिए अलग और ठोस नीति बनानी चाहिए।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जैसे CITES और अन्य पर्यावरण समझौतों का पालन, जो वन्यजीवों और पर्यावरण को बचाने में मदद करते हैं।
किसानों और आम लोगों के लिए सलाह
- किसान:
- अगर आपकी फसल की पत्तियां जल रही हैं या पीली पड़ रही हैं, तो स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से संपर्क करें।
- पराली जलाने से बचें और सरकार की मदद से बायोमास का सही इस्तेमाल करें।
- कम रसायनों वाली खेती अपनाएं।
- आम लोग:
- प्रदूषण कम करने के लिए कारपूलिंग, साइकिल या सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करें।
- अपने आसपास पेड़ लगाएं, क्योंकि ये हवा को साफ करते हैं।
- सरकार से मांग करें कि ग्रामीण इलाकों में भी प्रदूषण नियंत्रण के कदम उठाए जाएं।
क्यों जरूरी है तुरंत कार्रवाई?
- खाद्य सुरक्षा: अगर फसलें कम हुईं, तो भोजन की कमी और महंगाई बढ़ेगी।
- किसानों की आजीविका: कम पैदावार से किसान कर्ज में डूब सकते हैं।
- स्वास्थ्य: ओजोन प्रदूषण से सांस की बीमारियां, जैसे अस्थमा और ब्रॉन्काइटिस, बढ़ रही हैं।
- वैश्विक जिम्मेदारी: भारत दुनिया का बड़ा खाद्य आपूर्तिकर्ता है। अगर हमारी फसलें प्रभावित हुईं, तो कई देशों में भुखमरी बढ़ सकती है।