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हिंदू कुश हिमालय में मॉनसून का कहर, बाढ़ और भूस्खलन की चेतावनी

by kishanchaubey
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हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र इस मॉनसूनी सीजन में प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ सकता है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस साल तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक अधिक रह सकता है और भारत, नेपाल, पाकिस्तान व तिब्बत क्षेत्र में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की आशंका है। इस स्थिति से बाढ़, भूस्खलन, मलबे का बहाव और ग्लेशियल झीलों के फटने जैसी आपदाएं क्षेत्र में तबाही मचा सकती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में बारिश और गर्मी दोनों सामान्य से अधिक रहने वाली हैं। 1980 से 2024 के बीच आई बाढ़ों में से 72.5% केवल मॉनसून सीजन में दर्ज की गई हैं, जो जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को दर्शाता है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि इस बार आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ सकती है, जिसका मानव जीवन, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।

बाढ़ और आपदाओं का बढ़ता खतरा

आईसीआईएमओडी के सात दशकों के बाढ़ विश्लेषण से पता चला है कि हिंदू कुश हिमालय में बाढ़ की घटनाएं न केवल बढ़ रही हैं, बल्कि जटिल भी हो रही हैं, जिससे इनका पूर्वानुमान करना मुश्किल हो गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण तेज बारिश, पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना और ग्लेशियरों का पीछे हटना जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। ये बदलाव बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियल झीलों के फटने की घटनाओं को और विनाशकारी बना रहे हैं।

गर्मी और भारी बारिश का दोहरा खतरा

आईसीआईएमओडी के वरिष्ठ सलाहकार अरुण भक्त श्रेष्ठ ने कहा, “सभी पूर्वानुमान बताते हैं कि इस बार हिमालय क्षेत्र अधिक गर्म और नम रहेगा। इससे न केवल आपदाएं बढ़ेंगी, बल्कि हिमनद, पर्माफ्रॉस्ट और बर्फ के भंडार भी प्रभावित होंगे।” इसके अलावा, वैज्ञानिकों ने डेंगू जैसी बीमारियों और हीट स्ट्रेस के बढ़ते जोखिम की भी चेतावनी दी है। अफगानिस्तान जैसे जल संकटग्रस्त देशों में बारिश की कमी भूख और पानी की किल्लत को और गंभीर कर सकती है।

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पूर्व चेतावनी प्रणाली की जरूरत

आईसीआईएमओडी की आपदा जोखिम विशेषज्ञ सस्वता सान्याल ने जोर देकर कहा, “यह क्षेत्र भारी जलवायु जोखिम में है। हमें तत्काल बड़े पैमाने पर पूर्व चेतावनी प्रणाली लागू करने की जरूरत है।” विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु अनुकूलन पर खर्च होने वाले 63 अरब डॉलर में से केवल 4-5 अरब डॉलर ही पूर्व चेतावनी प्रणालियों और जलवायु सेवाओं पर खर्च हो रहे हैं। यह आंकड़ा खतरे की गंभीरता को नजरअंदाज करने की ओर इशारा करता है।

विशेषज्ञ सार्थक श्रेष्ठ ने कहा, “हिंदू कुश हिमालय खतरे का केंद्र बनता जा रहा है, जहां बड़ी आबादी जोखिम में है। लेकिन जलवायु आंकड़ों और पूर्वानुमान की कमी एक बड़ी चुनौती है। हमें अत्याधुनिक पूर्वानुमान प्रणालियों की सख्त जरूरत है।”

कम बर्फ, बढ़ता खतरा

आईसीआईएमओडी की अप्रैल 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, यह लगातार तीसरा साल होगा जब हिमालय में सामान्य से बहुत कम बर्फ जमी है, जो 23 वर्षों में न्यूनतम स्तर पर है। कम बर्फ और तेज बारिश का संयोजन भारी मॉनसून की चेतावनी देता है। क्लाइमेट ट्रेंड्स के एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले दो दशकों में हिमालय की बर्फ की सतह का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है।

2019 में आईसीआईएमओडी की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू कुश हिमालय वैश्विक औसत से अधिक तेजी से पिघल रहा है। यदि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित भी कर लिया जाए, तब भी यह क्षेत्र गर्म होता रहेगा।

“वाटर, आइस, सोसाइटी एंड इकोसिस्टम्स इन हिंदू कुश हिमालय” रिपोर्ट के अनुसार, सदी के अंत तक हिंदू कुश हिमालय के ग्लेशियर अपनी 80% बर्फ खो सकते हैं। 2011-2020 के बीच ग्लेशियरों की बर्फ 65% तेजी से पिघली है।

आबादी पर मंडराता खतरा

शोध बताते हैं कि हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र की 49% आबादी एक साथ कई आपदाओं के खतरे में है। 3.6 करोड़ से अधिक लोग अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे हैं। तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन को इन जटिल आपदाओं का प्रमुख कारण माना जा रहा है।

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