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महाकुंभ 2025: गंगा स्नान, आस्था या प्रशासन की नौटंकी?

by kishanchaubey
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Mahakumbh 2025: 5 फरवरी 2025 को प्रयागराज महाकुंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संगम तट पर गंगा में डुबकी लगाई। यह क्षण भक्तों के लिए अविस्मरणीय था, जिसे मीडिया ने बड़े उत्साह के साथ दिखाया। लेकिन क्या आपने सोचा है कि जिस गंगा जल में पीएम मोदी ने स्नान किया, वह वास्तव में कितना स्वच्छ था? क्या आम जनता को भी उसी स्तर का स्वच्छ जल उपलब्ध कराया गया था, या फिर यह सिर्फ एक दिखावा था?

गंगा जल की गुणवत्ता पर सवाल

कोर्ट के आदेशानुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) कुंभ के दौरान गंगा जल की गुणवत्ता की निगरानी कर रहा है। लेकिन रिपोर्ट जारी करने की गति इतनी धीमी है कि जब तक रिपोर्ट आती है, तब तक न सिर्फ श्रद्धालु गंगा स्नान कर चुके होते हैं, बल्कि अगला कुंभ भी करीब आ जाता है। उदाहरण के लिए, 5 फरवरी को पीएम मोदी ने गंगा स्नान किया, लेकिन CPCB की वेबसाइट पर उपलब्ध रिपोर्ट सिर्फ 24 जनवरी तक की ही थी। यानी अगर कोई जानना चाहे कि 5 फरवरी को गंगा का जल कितना साफ था, तो उसे दस दिन इंतजार करना पड़ेगा! तब तक लाखों लोग पहले ही गंगा में डुबकी लगा चुके होंगे।

आंकड़ों में अनियमितता और जल गुणवत्ता का रहस्य

अब सीधे आंकड़ों पर नज़र डालते हैं। 12 जनवरी को संगम तट पर प्रति 100 मिलीलीटर जल में फीकल कोलीफॉर्म (जो मानव मल के बैक्टीरिया होते हैं) की संख्या 4500 MPN थी। 13 और 14 जनवरी को यह बढ़कर 33,000 MPN हो गई और 20 जनवरी को यह 49,000 MPN तक पहुंच गई। लेकिन अब ध्यान देने वाली बात यह है कि 13 और 14 जनवरी को पुष्य पूर्णिमा और मकर संक्रांति थी, जब लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने पहुंचे। उसी दिन जल में फीकल कोलीफॉर्म “1.8 MPN” से भी कम बताया गया।

गंगा का VIP ट्रीटमेंट या प्रशासन का खेल?

क्या यह चमत्कार था या प्रशासन का खेल? 20 जनवरी को कोई विशेष स्नान पर्व नहीं था, फिर भी जल में फीकल कोलीफॉर्म 49,000 MPN तक पहुंच गया। लेकिन स्नान पर्व के दिन यह बिल्कुल स्वच्छ कैसे दिखा दिया गया? क्या प्रशासन ने जल की गुणवत्ता के आंकड़ों में हेरफेर किया?

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5 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संगम में स्नान किया। अब CPCB की अगली रिपोर्ट यदि जल को “0 फीकल कोलीफॉर्म” वाला दिखा देती है, तो क्या इसका मतलब यह है कि गंगा ने अचानक शुद्धिकरण कर लिया या फिर प्रशासन ने आंकड़ों में हेरफेर किया?

हमारे अधिकार और पारदर्शिता की मांग

यदि 5 फरवरी की रिपोर्ट में जल स्वच्छ दिखाया जाता है, तो क्या इसका अर्थ यह है कि आम जनता को पहले गंदा पानी उपलब्ध कराया गया था? और यदि जल वास्तव में दूषित था, तो क्या प्रधानमंत्री को भी प्रदूषित जल में डुबकी लगवाई गई? यह सिर्फ गंगा या यमुना की स्वच्छता का सवाल नहीं है, यह जनता के अधिकारों का सवाल है।

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