नई दिल्ली: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ के सालाना संस्करण स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट इन फिगर्स 2025 की ताजा रिपोर्ट में भारत के जंगलों पर मंडरा रहे खतरे की चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। देश में विकास के नाम पर जंगलों का बड़े पैमाने पर डायवर्जन हो रहा है, जिसके तहत सड़कों, खनन, और अन्य परियोजनाओं के लिए वन भूमि को गैर-वनीय उपयोग में बदला जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने गैर-वनीय गतिविधियों के लिए 29,000 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन को मंजूरी दी, जो पिछले एक दशक में सबसे अधिक है। यह आंकड़ा पिछले वर्ष (2022-23) की तुलना में 66 प्रतिशत ज्यादा है। पिछले दशक (2014-15 से 2023-24) में कुल 1,73,397 हेक्टेयर वन भूमि का डायवर्जन किया गया, जो हरियाणा के कुल वन क्षेत्र (1,61,426 हेक्टेयर) से भी अधिक है।
डायवर्जन का मुख्य कारण
रिपोर्ट बताती है कि वन भूमि का डायवर्जन मुख्य रूप से सड़क निर्माण, खनन, बिजली लाइनों, सिंचाई परियोजनाओं, रेलवे, और जल विद्युत परियोजनाओं के लिए किया गया। खनन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्राथमिकता देने के लिए जंगलों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है, जिससे पर्यावरण और जैव-विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
पर्यावरण पर प्रभाव
वनों का यह बड़े पैमाने पर डायवर्जन न केवल जैव-विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन, मिट्टी के कटाव, और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। जंगल कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण और जलवायु संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और इनका तेजी से नुकसान भारत के पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्रभावित कर सकता है।
विशेषज्ञों की चिंता
सीएसई के विशेषज्ञों का कहना है कि विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि वनों का डायवर्जन इसी गति से जारी रहा, तो भारत को दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सामाजिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि सरकार को वैकल्पिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि गैर-वन भूमि का उपयोग और हरित तकनीकों को बढ़ावा देना।