Water Crisis: केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा हाल ही में जारी किए गए वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट में भारत के भूजल की स्थिति को लेकर चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। 2023 में देश के 779 जिलों में से 440 जिलों में भूजल में नाइट्रेट की मात्रा निर्धारित सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है। यह आंकड़ा 2017 के मुकाबले काफी बढ़ चुका है, जब 359 जिलों में नाइट्रेट का स्तर उच्च पाया गया था।
सीजीडब्ल्यूबी द्वारा 15,239 भूजल नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 19.8 प्रतिशत नमूने नाइट्रेट के मानक स्तर से अधिक पाए गए। हालांकि, यह आंकड़ा 2017 में 21.6 प्रतिशत था, जो कि कुछ हद तक घटा है, लेकिन यह अभी भी गंभीर चिंता का विषय है। नाइट्रेट का उच्च स्तर पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और खासकर शिशुओं के लिए यह ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, यह पर्यावरणीय प्रभाव भी डालता है, जिससे जल निकायों और मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में 49 प्रतिशत, कर्नाटका में 48 प्रतिशत और तमिलनाडु में 37 प्रतिशत भूजल नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा सीमा से अधिक पाई गई। इन राज्यों में नाइट्रेट संदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए इस समस्या को हल करने की आवश्यकता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्य भूगर्भीय कारणों से इस संदूषण का सामना कर रहे हैं, जहां समस्या का समाधान चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
इसके अलावा, भूजल में फ्लोराइड और यूरेनियम जैसे अन्य रासायनिक प्रदूषकों की भी सांद्रता चिंताजनक है। राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फ्लोराइड की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक पाई गई है, जो हड्डियों और दांतों की समस्याएं पैदा कर सकती हैं और लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
भारत में भूजल का अत्यधिक उपयोग एक और गंभीर समस्या है, क्योंकि इसका दोहन वर्तमान में 60.4 प्रतिशत तक पहुँच चुका है। यह स्थिति 2009 से स्थिर बनी हुई है, और यह संकेत देता है कि जल संकट भविष्य में और अधिक गंभीर हो सकता है।
हालांकि, सीजीडब्ल्यूबी ने 73 प्रतिशत भूजल ब्लॉकों को सुरक्षित घोषित किया है, लेकिन कई अन्य ब्लॉकों में जल स्तर में गिरावट देखी जा सकती है। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में जल संरक्षण और भूजल पुनर्भरण की दिशा में अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में भूजल संकट को टाला जा सके।