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वैश्विक ऊर्जा उत्सर्जन ने बनाया नया रिकॉर्ड, 2024 में दर्ज हुई एक फीसदी की वृद्धि

by kishanchaubey
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दुनिया में बिजली की बढ़ती मांग, साफ ऊर्जा की रफ्तार और जीवाश्म ईंधनों की निरंतरता एक जटिल लेकिन निर्णायक दौर बना रहे हैं। सवाल यह है कि क्या दुनिया इस ऊर्जा बदलाव को सतत और न्यायसंगत बना पाएगी?

वैश्विक ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है। अक्षय ऊर्जा का विस्तार तेज हो रहा है, लेकिन कुल ऊर्जा मांग उससे भी तेजी से बढ़ रही है। नतीजतन, कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का उपयोग कम होने के बजाय बढ़ रहा है। 2024 में ऊर्जा से जुड़ा कार्बन उत्सर्जन लगातार चौथे साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा, जिसमें एक फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।बढ़ता वैश्विक तापमान नए रिकॉर्ड बना रहा है।

वैश्विक औसत तापमान कई बार 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर चुका है। ऊर्जा क्षेत्र से बढ़ता उत्सर्जन एक बड़े खतरे का संकेत है।2024 में वैश्विक ऊर्जा मांग 2 फीसदी बढ़कर 592 एक्साजूल तक पहुंच गई, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। सभी प्रमुख ऊर्जा स्रोतों—कोयला, तेल, गैस, जलविद्युत, परमाणु और अक्षय ऊर्जा—का उपयोग ऐतिहासिक स्तर पर रहा।

सौर और पवन ऊर्जा में 2024 में 16 फीसदी की रिकॉर्ड वृद्धि हुई, जो कुल ऊर्जा मांग की वृद्धि से नौ गुणा तेज थी। इसमें चीन का योगदान सबसे बड़ा रहा, जहां वैश्विक सौर ऊर्जा वृद्धि में 57 फीसदी हिस्सेदारी थी। पिछले दो वर्षों में सौर ऊर्जा लगभग दोगुनी हो गई।

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जीवाश्म ईंधन की मजबूत पकड़

चिंता की बात है कि अक्षय ऊर्जा की तेज वृद्धि भी बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में भी एक फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई। यह दर्शाता है कि ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव हो रहा है, लेकिन यह संतुलित नहीं है। अक्षय ऊर्जा की वृद्धि वैश्विक ऊर्जा की बढ़ती मांग को शांत करने के लिए काफी नहीं है।

2024 में अक्षय ऊर्जा के साथ-साथ तेल, गैस और कोयले का उपयोग भी एक फीसदी बढ़ा। भारत में कोयले की मांग 4 फीसदी बढ़ी, जो उत्तरी अमेरिका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका की कुल मांग के बराबर है। वहीं, चीन में कच्चे तेल की मांग में 1.2 फीसदी की कमी आई, जो संकेत देता है कि 2023 में तेल की मांग अपने चरम पर रही होगी।

बढ़ती ऊर्जा की भूख

2024 में बिजली की वैश्विक मांग में 4 फीसदी की वृद्धि हुई, जो दर्शाता है कि हम ‘ऊर्जा युग’ में प्रवेश कर चुके हैं। साफ ऊर्जा तेजी से बढ़ रही है, लेकिन ऊर्जा की मांग उससे भी तेज है। नतीजतन, साफ ऊर्जा पुराने ईंधनों को हटाने के बजाय कुल ऊर्जा मिश्रण में जुड़ रही है। साफ और पारंपरिक ऊर्जा का साथ-साथ बढ़ना दर्शाता है कि ऊर्जा बदलाव की राह में कई चुनौतियां हैं, जैसे बुनियादी ढांचे की कमी, वित्तीय बाधाएं और देशों के बीच मतभेद।विकासशील देशों में बिजली का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यह बदलाव अव्यवस्थित है।

साफ और पारंपरिक ऊर्जा साथ-साथ बढ़ रही हैं, जिससे उत्सर्जन में कटौती मुश्किल हो रही है। यही कारण है कि लगातार चौथे साल कार्बन उत्सर्जन ने नया रिकॉर्ड बनाया।2030 तक अक्षय ऊर्जा को तीन गुणा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन प्रगति असमान है। यूरोप में ब्याज दरों और आपूर्ति श्रृंखला की लागत ने अक्षय ऊर्जा की गति को धीमा किया है।

चीन और भारत जैसे देश विकास की चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिससे ऊर्जा बदलाव अव्यवस्थित हो गया है।नेताओं को अब बड़ी घोषणाओं से आगे बढ़कर जमीनी काम, क्षेत्रीय अवसरों और ठोस रणनीतियों पर ध्यान देना होगा। सस्ती ऊर्जा, सुरक्षित आपूर्ति और कम उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना जरूरी है।

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