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हिमालयी क्षेत्र में जलवायु बदलाव से जलविद्युत परियोजनाओं पर गंभीर खतरा

by kishanchaubey
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जलवायु परिवर्तन और हिमालयी क्षेत्र में बढ़ती चरम मौसमी घटनाएं जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बड़ा खतरा बन गई हैं। क्लाइमेट रिस्क होराइजंस की ताजा रिपोर्ट “नेविगेटिंग क्लाइमेट रिलेटेड फाइनेंशियल रिस्क्स” ने इस ओर चेतावनी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में स्थापित जलविद्युत परियोजनाएं भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर टूटने जैसी घटनाओं के कारण भारी आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान झेल सकती हैं।

चमोली और तीस्ता III हादसों ने दिखाया खतरा

रिपोर्ट में 2021 में चमोली आपदा और 2023 में तीस्ता III आपदा के उदाहरण दिए गए हैं।

  • चमोली आपदा (2021):
    इसमें करीब 1,625 करोड़ रुपए का वित्तीय नुकसान हुआ, और मलबा हटाने में लगभग 3,400 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
    • आपदा में 1.74 करोड़ क्यूबिक मीटर मलबा जमा हुआ था, जिसे हटाने में करीब 133 साल लग सकते हैं।
  • तीस्ता III आपदा (2023):
    इस घटना ने बड़े पैमाने पर बर्बादी की और परियोजना को सालों पीछे धकेल दिया।

उत्तराखंड की जलविद्युत परियोजनाओं पर खतरा

उत्तराखंड में लगभग 70,000 करोड़ रुपए के निवेश वाली कम से कम 15 जलविद्युत परियोजनाएं उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में स्थापित हैं।

  • 18 परियोजनाएं: पहले से चालू हैं।
  • 81 बड़ी परियोजनाएं: (25 मेगावाट से अधिक क्षमता) पाइपलाइन में हैं।

इन परियोजनाओं का भविष्य हिमालयी क्षेत्र की अस्थिर जलवायु परिस्थितियों और आपदाओं के कारण अनिश्चित हो गया है।

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भविष्य में बढ़ते खतरों के संकेत

उत्तराखंड पहले से ही प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील क्षेत्र रहा है।

  • बाढ़ के खतरे:
    • मंगलौर बेसिन: सबसे अधिक जोखिम में।
    • पोंटा-विकासनगर क्षेत्र: दूसरे स्थान पर।
  • भूस्खलन:
    • पिथौरागढ़-बागेश्वर बेसिन: सबसे संवेदनशील।
  • जलविद्युत परियोजनाओं पर खतरा:
    • जोशीमठ-श्रीनगर बेसिन: सबसे संवेदनशील।
    • टिहरी-उत्तरकाशी और पिथौरागढ़-बागेश्वर बेसिन: अति संवेदनशील।

जलवायु जनित आपदाओं का समाधान

रिपोर्ट ने इन खतरों से बचने और जोखिम कम करने के लिए कई सुझाव दिए हैं:

  1. नई परियोजनाओं पर रोक:
    • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में नई जलविद्युत परियोजनाएं लगाने से बचा जाए।
  2. मल्टी-हैजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम:
    • बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर टूटने जैसी घटनाओं के लिए एक मजबूत चेतावनी प्रणाली लागू की जाए।
  3. जलवायु अनुकूल मानक अपनाना:
    • जलविद्युत परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाने के लिए उनकी संरचना को और मजबूत बनाया जाए।
    • अप्रत्याशित बाढ़ और भूस्खलन के लिए रिज़िलिएंट तकनीकों का उपयोग किया जाए।
  4. पुराने डेटा पर पुनर्विचार:
    • परियोजनाओं को डिजाइन करने के लिए पुराने जलवायु डेटा के बजाय नए और अद्यतन डेटा का उपयोग करें।

उत्तराखंड के लिए चेतावनी और तैयारी की जरूरत

उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं को योजना बनाकर और सतर्कता के साथ लागू करना जरूरी है। चमोली और तीस्ता III जैसी आपदाएं न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि पर्यावरण और समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं।

सरकार और स्थानीय प्रशासन को इन जोखिमों को गंभीरता से लेते हुए जलवायु अनुकूल नीतियां अपनानी चाहिए, ताकि हिमालयी क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा और देश की ऊर्जा सुरक्षा सुरक्षित रह सके।

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