सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने को केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने के मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन बताया है। कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारों को सख्त कदम उठाने होंगे और पराली जलाने से उत्पन्न संकट से निपटने में विफलता को लेकर राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई।
सरकारों की विफलता पर नाराजगी
न्यायमूर्ति अभय ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण से जुड़े एमसी मेहता मामले की सुनवाई कर रही थी। विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हुए, कोर्ट ने सरकारों और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) की नाकामी पर सवाल उठाए।
खंडपीठ ने कहा कि समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें यह समझें कि हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त वातावरण में गरिमा के साथ जीने का अधिकार है। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “यह सिर्फ कानून लागू करने का मामला नहीं है, बल्कि यह संविधान के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सरकार को यह जवाब देना होगा कि वे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कैसे करेंगे।”
सरकारों को दिया सख्त संदेश
अदालत ने पंजाब और हरियाणा की सरकारों को 10 जून, 2021 के CAQM आदेश को लागू करने में नाकाम रहने पर आड़े हाथों लिया। पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों को तलब करते हुए अदालत ने कहा कि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने हरियाणा के अधिकारियों से सवाल किया, “आप मामूली जुर्माना लगाते हैं और लोगों को उल्लंघन करने का लाइसेंस दे रहे हैं। यह समस्या का समाधान नहीं है।”
हरियाणा के मुख्य सचिव ने दावा किया कि राज्य में 5,153 नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए थे, जिससे पिछले वर्षों की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। इस साल 655 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 9,800 मामले पिछले वर्षों में थे। लेकिन, अदालत ने यह भी पाया कि इन घटनाओं में से केवल 93 व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जबकि बाकी मामलों में मामूली जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया।
पराली जलाने का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
पराली जलाने से वायु प्रदूषण के स्तर में भारी वृद्धि होती है, जिसका सीधा असर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। पराली जलाने से हवा में सूक्ष्म कण (PM2.5 और PM10) और जहरीली गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे स्मॉग का निर्माण होता है। दिल्ली-एनसीआर सहित कई क्षेत्रों में सांस की बीमारियां, अस्थमा, हृदय रोग और आंखों में जलन जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारें सिर्फ कागजी कार्रवाई पर निर्भर नहीं रह सकतीं और उन्हें ठोस कदम उठाने होंगे। अदालत ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को निर्देश दिया कि वे पराली जलाने पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए आवश्यक प्रावधान लागू करें और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि मामले में सुधार नहीं होता है, तो वह सरकारों के खिलाफ और कड़े कदम उठाने पर विचार करेगी।
निष्कर्ष
यह सुप्रीम कोर्ट का कड़ा संदेश है कि पराली जलाना न केवल एक कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन है। सरकारों को अब इस समस्या का स्थायी और प्रभावी समाधान ढूंढने की जरूरत है, ताकि देश के नागरिकों को प्रदूषण मुक्त वातावरण मिल सके।