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अमूर फाल्कन ‘चिउलुआन2’ की अद्भुत उड़ान, सोमालिया से भारत तक 93 घंटे में 3,800 किमी का सफर

by kishanchaubey
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अमूर फाल्कन पक्षी ‘चिउलुआन2’ ने अपनी सहनशक्ति और प्राकृतिक प्रवृत्ति का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए सोमालिया से भारत तक 3,800 किलोमीटर की नॉन-स्टॉप उड़ान मात्र 93 घंटे में पूरी की है।

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) द्वारा ट्रैक किए गए इस छोटे रैप्टर पक्षी के इस सफर ने प्रवास की अद्भुत शक्ति और इस प्रजाति की लचीलता को उजागर किया है।

चिउलुआन2 का परिचय

चिउलुआन2 का नाम मणिपुर के तमेंगलॉन्ग जिले के एक गांव के नाम पर रखा गया है। यह पक्षी मणिपुर वन विभाग, डब्ल्यूआईआई और स्थानीय समुदायों द्वारा संचालित एक सैटेलाइट-टैगिंग अध्ययन का हिस्सा है। यह अध्ययन अमूर फाल्कन के प्रवास मार्गों और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिए शुरू किया गया है।

अमूर फाल्कन पशु जगत में सबसे लंबे प्रवासों में से एक करते हैं, जो हर साल साइबेरिया, उत्तरी चीन और मंगोलिया में अपने प्रजनन स्थलों से दक्षिणी अफ्रीका में सर्दियों के ठिकानों तक लगभग 20,000 किलोमीटर की दूरी तय करता है।

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प्रवास का रोमांचक सफर

बोत्सवाना में सर्दियां बिताने के बाद, चिउलुआन2 ने अप्रैल की शुरुआत में अपनी वापसी यात्रा शुरू की और सोमालिया में पहला बड़ा पड़ाव बनाया। वहां से उसने अरब सागर के ऊपर खतरनाक, नॉन-स्टॉप उड़ान शुरू की। तारे, सूरज, हवा और अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति के सहारे बिना किसी आधुनिक नेविगेशन उपकरण के उसने यह यात्रा पूरी की।

रीयल-टाइम ट्रैकिंग के जरिए पता चला कि चिउलुआन2 ने खुले समुद्र के ऊपर बिना रुके औसतन 41 किमी प्रति घंटे की गति बनाए रखी, जो वैज्ञानिकों और वन्यजीव प्रेमियों के लिए आश्चर्यजनक था।

पूर्वोत्तर भारत की भूमिका

पूर्वोत्तर भारत, खासकर मणिपुर और नगालैंड, हर साल हजारों अमूर फाल्कन्स के लिए एक महत्वपूर्ण रिफ्यूलिंग स्टॉप के रूप में काम करता है। यहां पक्षी आराम करते हैं और भोजन जुटाते हैं, ताकि अपनी उत्तर की ओर यात्रा जारी रख सकें।

2018 में शुरू की गई सैटेलाइट-टैगिंग पहल ने इन पक्षियों के प्रवासी व्यवहार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है और स्थानीय संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा दिया है।

संरक्षण का महत्व

चिउलुआन2 की इस सफल समुद्री यात्रा ने न केवल अमूर फाल्कन्स की असाधारण सहनशक्ति को दर्शाया है, बल्कि प्रवासी प्रजातियों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है।

मणिपुर और नगालैंड में स्थानीय समुदायों के सहयोग से चल रहे संरक्षण प्रयास इन पक्षियों के लिए सुरक्षित ठिकाने सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

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