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जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने के लिए देशों की योजनाएं अपर्याप्त, तापमान नियंत्रण के लिए 2030 तक उत्सर्जन में बड़े स्तर पर कटौती जरूरी

by reporter
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संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए देशों की मौजूदा योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट बताती है कि अगर सभी देशों ने अपनी मौजूदा योजनाओं को पूरी तरह लागू भी कर दिया, तब भी कार्बन उत्सर्जन में 2019 के स्तर से केवल 2.6% की कमी आएगी।

जरूरी कटौती: तापमान नियंत्रण के लिए अधिक प्रयास आवश्यक

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) का कहना है कि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस (ºC) पर बनाए रखने के लिए कार्बन उत्सर्जन में 2030 तक 43% और 2035 तक 60% की कमी लानी होगी। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ेगा, जिससे कई पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

देशों की मौजूदा जलवायु योजनाएं

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में पेरिस समझौते के तहत 195 देशों में से 168 देशों की नवीनतम राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (Nationally Determined Contributions या NDCs) को शामिल किया गया है।

भारत ने अपनी जलवायु योजना में अगस्त 2022 में बदलाव किया था। भारत ने संकल्प लिया है कि 2030 तक वह अपने GDP की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के स्तर से 45% तक कम करेगा। साथ ही, 2030 तक स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से होगा।

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UN का संदेश: अधिक कदम उठाने की आवश्यकता

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने कहा, “अगले दौर की राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में जलवायु कार्रवाई और महत्वाकांक्षा को बड़े स्तर पर बढ़ाने की जरूरत है।”

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण और स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। बढ़ता तापमान पृथ्वी के संतुलन को बिगाड़ता है, जिससे मौसम में अप्रत्याशित बदलाव, सूखा, बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है। ये समस्याएं खेती और जल संसाधनों को प्रभावित करती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।

स्वास्थ्य पर भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर है। गर्मी से जुड़ी बीमारियाँ, जैसे हीट स्ट्रोक, और संक्रमण का खतरा बढ़ता है। तापमान में वृद्धि वायु गुणवत्ता को खराब कर सकती है, जिससे सांस और हृदय से जुड़ी बीमारियाँ बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दुनिया को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए और अधिक ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। तापमान को सीमित करने के लिए वर्तमान योजनाओं में बड़े स्तर पर बदलाव लाने होंगे, ताकि हम भविष्य में पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बच सकें।

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