मध्य प्रदेश : गांधी सागर बांध का पानी साल के ज्यादातर समय खेतों को डुबाए रखता है, जिससे सिर्फ मार्च से जून के बीच ही खेती संभव हो पाती है। ऐसे में यहां के किसान अब गर्मियों के मौसम में खरबूजे की खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। खासकर खरबूजे के बीजों की बिक्री से किसानों को भारी लाभ होता है।
1960 में राजस्थान के कई जिलों को पीने का पानी और 115 मेगावाट बिजली देने के लिए चंबल नदी पर मध्य प्रदेश में गांधी सागर बांध का निर्माण किया गया था। इस बांध के कारण नीमच जिले के रामपुर ब्लॉक के ज्यादातर गांवों की जमीनें डूब क्षेत्र में आ गई हैं। मानसून के बाद से जनवरी की शुरुआत तक ये खेत पानी में डूबे रहते हैं और फरवरी के आखिर में पानी कम होने पर ही खेती शुरू होती है।
खरबूजे की खेती की शुरुआत और लाभ
किसान बालचंद पाटीदार बताते हैं कि मानसून खत्म होने के बाद मिट्टी की नमी का इस्तेमाल बीज बोने के लिए किया जाता है। फूल आने के दौरान एक बार सिंचाई की जाती है और फिर फल आने के बाद कटाई और बीज निकालने का काम शुरू होता है। यह प्रक्रिया समय लेने वाली नहीं है और इससे लगातार ध्यान देने की आवश्यकता भी नहीं होती है।
खरबूजे के बीजों की मांग और कीमत में हाल के दिनों में काफी वृद्धि हुई है। किसानों के मुताबिक, इस साल सबसे अच्छी क्वालिटी के बीज 35 हजार रुपए प्रति क्विंटल बिके। लगभग 0.6 हेक्टेयर जमीन में दो किलो बीज बोकर डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिलता है।
एक किसान ने बताया कि इस साल उनकी अनुमानित उपज 40 क्विंटल है, जिससे उन्हें लगभग साढ़े तेरह लाख रुपए की आमदनी होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, “औसतन, मैं बीज बोने से लेकर बीज बेचने तक चार से पांच लाख रुपए खर्च करता हूं, फिर भी लगभग नौ लाख रुपए का मुनाफा हो जाता है।”
खरबूजे के बीज से वित्तीय सुरक्षा
खरबूजे की खेती ने किसानों को आर्थिक सुरक्षा दी है। पप्पू पाटीदार के पास 0.66 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है जो साल के ज्यादातर समय डूबी रहती है। उन्हें इस साल खरबूजे के बीजों की बिक्री से ढाई लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी होने की उम्मीद है। वे बताते हैं, “खरबूजे की खेती से हमें जो आमदनी होती है, वह हमारे सुरक्षित भविष्य के लिए सावधि जमा की तरह काम करती है।”
जिले में 735 हेक्टेयर भूमि पर खरबूजे की खेती की जा रही है। इस साल मई के आखिर तक कुल 11,062 मीट्रिक टन खरबूजे के बीज निकाले गए थे और वे बिक्री के लिए तैयार हैं।
प्रसंस्करण इकाई की जरूरत
फसल की कटाई के दौरान नीमच का रामपुरा बाजार खरबूजे के बीजों से भर जाता है, जिन्हें निजी ठेकेदार खरीद लेते हैं और उन्हें 600 किलोमीटर दूर हाथरस भेजा जाता है, जहां प्रोसेसिंग के बाद इन बीजों को बाजार में मगज के रूप में बेचा जाता है। हालांकि, इस दूरी के कारण परिवहन पर काफी खर्च आता है, जिससे किसानों की कमाई कम हो जाती है।
एटीएमए के उप परियोजना निदेशक यतिन मेहता का कहना है कि यदि क्षेत्र में प्रसंस्करण इकाई लगाई जाए तो किसानों की कमाई काफी बढ़ सकती है। इसके अलावा, खरबूजे के गूदे का भी मूल्यवर्धित उत्पाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। स्थानीय अधिकारी इस पर विचार कर रहे हैं ताकि किसानों को अधिक लाभ मिल सके।
किसानों की उम्मीदें और चुनौतियाँ
इस क्षेत्र में हर साल बाढ़ का खतरा बना रहता है, जो किसानों की सबसे बड़ी चिंता है। 2019 में आई बाढ़ से गांव बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इसके बावजूद, खरबूजे की खेती ने यहां के किसानों को वित्तीय सुरक्षा दी है। किसान पप्पू पाटीदार का कहना है, “हम हमेशा इस डर में रहते हैं कि न सिर्फ हमारे खेत, बल्कि एक दिन हमारे घर भी बह जाएंगे।”
नीमच के किसानों की खरबूजे की खेती ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है, बल्कि एक उदाहरण भी स्थापित किया है कि कैसे प्राकृतिक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कृषि में नए अवसर खोजे जा सकते हैं। प्रसंस्करण इकाई की स्थापना से उनकी कमाई में और इजाफा होने की संभावना है, जिससे उन्हें और अधिक स्थायित्व मिल सकेगा।