नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अरुणाचल प्रदेश की नदियों और झीलों में फ्लोराइड के खतरनाक स्तर पर गहरी चिंता जताई है। एनजीटी ने 17 सितंबर 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), अरुणाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, तवांग जिले के उपायुक्त और नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया एनजीटी की पूर्वी पीठ के समक्ष पेश करने के निर्देश दिए हैं।
इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर 2025 को होगी।एनजीटी ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) की 26 अगस्त 2025 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया।
डीटीई की रिपोर्ट में अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले की नदियों और झीलों में फ्लोराइड के अत्यधिक उच्च स्तर की जानकारी सामने आई है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक है।
डीटीई रिपोर्ट में क्या आया सामने?
रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में डीआरडीओ तेजपुर के वैज्ञानिकों ने तवांग जिले की नदियों और ऊंचाई वाली झीलों से लिए गए पानी के नमूनों में फ्लोराइड का स्तर 21.86 मिलीग्राम/लीटर तक पाया, जो डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा 1.5 मिलीग्राम/लीटर से लगभग 14 गुना अधिक है।
इसके बाद 2024 में नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, ईटानगर के शोधकर्ताओं ने एक और अध्ययन किया, जिसमें प्रसिद्ध पर्यटन स्थल संगेस्तर त्सो (माधुरी झील) में फ्लोराइड का स्तर 7.11 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया, जो डब्ल्यूएचओ की सीमा से चार गुना अधिक है।
एनजीटी का सख्त रुख
एनजीटी ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारियों से तत्काल जवाब मांगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला प्राकृतिक जल स्रोतों में प्रदूषण के बढ़ते खतरे को दर्शाता है, जो न केवल स्थानीय समुदायों बल्कि पर्यावरण और जैव विविधता के लिए भी खतरा है।
