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विश्व हीमोफीलिया दिवस 2025: भारत में 80% मामले अनदेखे, महिलाओं के लिए समान उपचार की मांग

by kishanchaubey
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Haemophilia

World Haemophilia Day 2025: हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्राव विकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और प्रभावित लोगों के लिए बेहतर उपचार सुनिश्चित करना है। इस साल की थीम, “सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी रक्तस्राव होता है”, महिलाओं और लड़कियों में इस विकार के निदान और उपचार में लैंगिक असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता पर जोर देती है।

भारत, जहां हीमोफीलिया ए के 1,36,000 मामले अनुमानित हैं, में 80% मामले अनिदानित हैं, जो सीमित स्क्रीनिंग और जागरूकता की कमी को दर्शाता है।

हीमोफीलिया: एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार

हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्तस्राव विकार है, जिसमें रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया बाधित होती है, जिसके कारण चोट या सर्जरी के बाद लंबे समय तक रक्तस्राव होता है। यह स्थिति मुख्य रूप से पुरुषों को प्रभावित करती है, क्योंकि यह एक्स गुणसूत्र के माध्यम से विरासत में मिलती है, लेकिन महिलाएं भी इसके लक्षणों से प्रभावित हो सकती हैं।

हालांकि, महिलाओं के लक्षणों को अक्सर सामान्य मासिक धर्म के रूप में गलत समझा जाता है, जिससे निदान में देरी होती है। विश्व हीमोफीलिया महासंघ (डब्ल्यूएफएच) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 10,000 में से केवल एक व्यक्ति हीमोफीलिया से पीड़ित है, जो इसे अन्य पुरानी बीमारियों की तुलना में दुर्लभ बनाता है।

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भारत में हीमोफीलिया की स्थिति

हीमोफीलिया और हेल्थ कलेक्टिव ऑफ नॉर्थ (एचएचसीएन) के अनुसार, भारत में हीमोफीलिया ए के 1,36,000 मामले हैं, जो इसे दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा प्रभावित देश बनाता है। हालांकि, विश्व हीमोफीलिया महासंघ के आंकड़ों के मुताबिक, केवल 21,000 मरीज ही पंजीकृत हैं।

लगभग 80% मामलों का निदान नहीं हो पाता, क्योंकि कई अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में रक्त जमावट की जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं है। एक मरीज को औसतन सालाना 30-35 रक्तस्राव का सामना करना पड़ता है, जिससे जोड़ों की क्षति, अक्षमता, और समयपूर्व मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है।

उपचार में चुनौतियां और नए दिशा-निर्देश

पिछले साल एचएचसीएन ने हीमोफीलिया मरीजों (पीडब्ल्यूएच) के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए, जो रक्तस्राव को रोकने के लिए प्रोफिलैक्सिस उपचार को मानक के रूप में सुझाते हैं। इन दिशा-निर्देशों में एमिसिज़ुमैब (हेमलिब्रा) जैसे गैर-फैक्टर उत्पादों का उपयोग शामिल हैphants, जो अब भारत में उपलब्ध हैं। यह उपचार रक्तस्राव को रोकने के लिए नियमित रूप से इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है।

विकसित देशों में 80-90% मरीज प्रोफिलैक्सिस उपचार पर हैं, जबकि भारत में केवल 4% मरीजों को यह सुविधा मिलती है। अधिकांश मरीज ऑन-डिमांड थेरेपी पर निर्भर हैं, जिसमें रक्तस्राव होने पर ही उपचार किया जाता है। यह जोड़ों को नुकसान और अन्य जटिलताओं का कारण बन सकता है। अप्रैल 2024 में क्यूरियस मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, प्रोफिलैक्सिस उपचार जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।

एमिसिज़ुमैब, एक बाइस्पेसिफिक एंटीबॉडी, फैक्टर VIII की कमी को पूरा करता है और रक्तस्राव की दर को काफी कम करता है। यह उपचार विशेष रूप से उन मरीजों के लिए प्रभावी है, जिनमें फैक्टर VIII के प्रति इन्हिबिटर विकसित हो जाते हैं, जिससे पारंपरिक उपचार अप्रभावी हो जाता है। हालांकि, इसकी उच्च लागत और ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित पहुंच इसे व्यापक रूप से अपनाने में बाधा बन रही है।

विश्व हीमोफीलिया दिवस 2025: थीम और महत्व

इस साल की थीम, “सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी रक्तस्राव होता है”, महिलाओं में हीमोफीलिया के निदान और उपचार में लैंगिक भेदभाव को संबोधित करती है। ऐतिहासिक रूप से, हीमोफीलिया को पुरुषों की बीमारी माना जाता रहा है, जिसके कारण महिलाओं के लक्षणों को अनदेखा किया गया। यह थीम न केवल जागरूकता बढ़ाने, बल्कि गलत निदान को सुधारने और महिलाओं के लिए समान उपचार सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।

विश्व हीमोफीलिया दिवस की स्थापना 1989 में विश्व हीमोफीलिया महासंघ ने अपने संस्थापक फ्रैंक श्नेबेल के सम्मान में की थी, जिन्होंने इस विकार के प्रति जागरूकता बढ़ाने और मरीजों की सेवा के लिए जीवन समर्पित किया। समय के साथ यह वैश्विक आंदोलन बन गया, जिसने उपचार और शोध में महत्वपूर्ण प्रगति को प्रेरित किया।

भारत में प्रगति और भविष्य की राह

भारत में हीमोफीलिया के उपचार में प्रगति हुई है, विशेष रूप से एमिसिज़ुमैब और जीन थेरेपी जैसे नवाचारों के साथ। वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में विकसित जीन थेरेपी ने पांच मरीजों पर आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। इसके अलावा, 2007-08 में दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और लोक नायक अस्पताल में पहला व्यापक हीमोफीलिया देखभाल केंद्र (एचडीसीसी) स्थापित किया गया, जिसके बाद देश भर में ऐसे केंद्रों का विस्तार हुआ।

हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं। एक मरीज के उपचार की 10 साल की लागत लगभग 2.54 करोड़ रुपये अनुमानित है, जो अधिकांश के लिए वहन करना मुश्किल है।

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