विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने आज, 2 अप्रैल 2025 को अपनी पहली रिपोर्ट जारी की है, जिसमें फंगल (कवक से होने वाली) बीमारियों के लिए दवाओं और जांच के तरीकों की भारी कमी को बताया गया है। रिपोर्ट कहती है कि इन बीमारियों से निपटने के लिए नए शोध और विकास की सख्त जरूरत है, क्योंकि ये एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फंगल रोग, जैसे कैंडिडा (जो मुंह और योनि में थ्रश पैदा करता है), अब दवाओं के खिलाफ मजबूत होते जा रहे हैं। ये बीमारियां खास तौर पर उन लोगों को ज्यादा प्रभावित करती हैं जो बहुत बीमार हैं या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, जैसे कैंसर के मरीज, एचआईवी से पीड़ित लोग, या जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ हो।
WHO की डॉ. युकिको नाकातानी ने कहा, “ये फंगल संक्रमण कमजोर लोगों की जान को खतरे में डाल रहे हैं, लेकिन कई देशों में इनसे बचाने के लिए सही इलाज और जांच की कमी है।” खासकर गरीब और मध्यम आय वाले देशों में जिला अस्पतालों तक में फंगल जांच नहीं हो पाती। इससे मरीजों की परेशानी का कारण पता नहीं चलता और सही इलाज देना मुश्किल हो जाता है।
रिपोर्ट बताती है कि डब्ल्यूएचओ की ‘अहम प्राथमिकता’ सूची में शामिल कवक बहुत खतरनाक हैं और इनसे मृत्यु दर 88% तक हो सकती है। जैसे-जैसे चिकित्सा में तरक्की हो रही है, कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोग बढ़ रहे हैं, जिससे फंगल बीमारियों के मामले भी बढ़ सकते हैं। लेकिन जांच के साधन कम होना, दवाओं की कमी, और नए इलाज के लिए धीमी प्रक्रिया इसे बड़ी चुनौती बना रही है।
पिछले 10 सालों में सिर्फ चार नई एंटीफंगल दवाओं को मंजूरी मिली है। अभी नौ दवाएं बन रही हैं, लेकिन सिर्फ तीन अंतिम चरण में हैं, यानी अगले कुछ सालों में बहुत कम नई दवाएं आएंगी। 22 दवाएं शुरुआती चरण में हैं, पर यह संख्या भी कम है। मौजूदा दवाओं के साइड इफेक्ट्स, दूसरी दवाओं के साथ टकराव, और लंबे अस्पताल में भर्ती की जरूरत भी बड़ी समस्या है। बच्चों के लिए तो सही खुराक और दवाओं पर शोध भी बहुत कम है।
डब्ल्यूएचओ ने सुझाव दिया है कि वैश्विक निगरानी बढ़ाई जाए, दवा बनाने के लिए पैसे दिए जाएं, नए शोध हों, और ऐसी दवाएं बनें जो मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि फंगल जांच के लिए टेस्ट मौजूद हैं, लेकिन ये बड़ी प्रयोगशालाओं और प्रशिक्षित स्टाफ पर निर्भर हैं। गरीब देशों में ये सुविधाएं नहीं हैं, इसलिए वहां तेज, सस्ते और आसान टेस्ट की जरूरत है।
मौजूदा जांच में दिक्कतें हैं- ये कुछ ही कवकों पर काम करते हैं, सटीक नहीं हैं, और परिणाम देर से मिलते हैं। कई जगह बिजली और अच्छी लैब की कमी भी बाधा है। स्वास्थ्य कर्मियों को भी फंगल बीमारियों और उनके प्रतिरोध की पूरी जानकारी नहीं है, जिससे सही इलाज चुनना मुश्किल होता है।
WHO ने दुनिया से फंगल रोगों और इनके प्रतिरोध के खिलाफ मजबूत कदम उठाने को कहा है। संगठन अपनी प्राथमिकता सूची (एफपीपीएल) के लिए एक कार्य योजना भी बना रहा है, ताकि इस समस्या से निपटा जा सके।