भारत में कभी गिद्धों की विशाल आबादी थी। ये पक्षी मवेशियों के शवों को साफ़ कर पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखते थे। लेकिन पिछले तीन दशकों में गिद्धों की संख्या में इतनी तेज़ गिरावट आई कि उनकी आबादी लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गई।
गिद्धों की आबादी में गिरावट का कारण: डाइक्लोफेनाक
1990 के दशक में गिद्धों की संख्या में गिरावट शुरू हुई। इसका मुख्य कारण था एक दवा—डाइक्लोफेनाक। यह दवा बीमार मवेशियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती थी। लेकिन जिन मवेशियों का इलाज इस दवा से किया गया, उनके शव खाने के बाद गिद्धों की किडनी फेल हो जाती थी, और वे मरने लगे।
1990 के दशक के मध्य तक, भारत में 5 करोड़ गिद्ध थे, लेकिन 2000 के दशक तक उनकी संख्या 95-98% तक घट गई। आखिरकार 2006 में डाइक्लोफेनाक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि, इसका प्रभाव तुरंत नहीं दिखा और गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियां—भारतीय गिद्ध, सफ़ेद पंख वाला गिद्ध, और लालसर गिद्ध—अब भी संकटग्रस्त हैं।
गिद्धों की कमी के मानव जीवन पर प्रभाव
गिद्धों की कमी ने सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि मानव जीवन पर भी बड़ा असर डाला।
- संक्रमण और बीमारियों का बढ़ना: गिद्धों के बिना, मवेशियों के शवों का निपटारा मुश्किल हो गया। इससे घातक बैक्टीरिया और वायरस फैलने लगे। अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल के अनुसार, गिद्धों की कमी के कारण 2000 से 2005 के बीच पांच लाख लोगों की मौत हुई।
- आवारा कुत्तों की आबादी बढ़ी: गिद्धों की गैरमौजूदगी में आवारा कुत्ते बड़ी संख्या में मवेशियों के शवों को खाने लगे। इससे रेबीज़ के मामलों में वृद्धि हुई।
- पानी की गुणवत्ता खराब हुई: सड़ते हुए मवेशियों के अवशेष पानी तक पहुंचने लगे, जिससे पीने का पानी दूषित हुआ।
गिद्धों की विलुप्ति के आर्थिक नुकसान
गिद्धों की संख्या में गिरावट का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि गिद्धों की कमी के कारण हर साल 69 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, क्योंकि समय से पहले होने वाली बीमारियों और मौतों ने श्रम शक्ति को प्रभावित किया।
गिद्धों का पर्यावरण में महत्व
गिद्ध पर्यावरण को साफ और स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये पक्षी तेज़ी से मवेशियों के शवों को खा जाते हैं, जिससे बीमारी फैलने का खतरा कम हो जाता है। गिद्धों के बिना, अन्य मांसाहारी जानवर जैसे आवारा कुत्ते, पर्यावरण से शवों को हटाने में उतने कारगर नहीं हैं।
क्या गिद्ध वापस लौट सकते हैं?
गिद्धों की वापसी के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
- संरक्षित क्षेत्रों में पुनर्वास: पश्चिम बंगाल में एक टाइगर रिज़र्व में 20 गिद्धों को पाला गया और उन्हें ट्रैकिंग डिवाइस के साथ छोड़ा गया।
- प्रजनन कार्यक्रम: भारत के कुछ हिस्सों में गिद्धों की आबादी बढ़ाने के लिए प्रजनन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
- दवाओं पर प्रतिबंध: डाइक्लोफेनाक के अलावा अन्य दवाओं, जैसे केटोप्रोफेन और ऐसिक्लोफेनाक, पर भी प्रतिबंध लगाने की कोशिशें चल रही हैं। ये दवाएं गिद्धों के लिए खतरनाक हैं।
- सार्वजनिक जागरूकता: मवेशियों के शवों को खुले में फेंकने की परंपरा पर रोक लगाई जा रही है और शवों को उचित तरीके से दफनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियां
हाल ही में दक्षिण भारत में 300 से अधिक गिद्ध देखे गए, जो गिद्धों की वापसी की उम्मीद जगाते हैं। हालांकि, यह संख्या अभी भी बहुत कम है। खनन, वन क्षेत्रों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां गिद्धों के अस्तित्व को खतरा पहुंचा रही हैं।
निष्कर्ष
गिद्धों का संरक्षण न सिर्फ पर्यावरण के लिए, बल्कि मानव जीवन और अर्थव्यवस्था के लिए भी जरूरी है। गिद्धों की संख्या में गिरावट ने यह साबित कर दिया कि हर प्रजाति हमारे इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि समय रहते उचित कदम उठाए गए, तो शायद गिद्धों की आबादी को फिर से बढ़ाया जा सके।