नई दिल्ली, 9 जून 2025: भारत में 2013 से 2023 के बीच जंगलों का क्षेत्रफल लगभग 16,630 वर्ग किलोमीटर बढ़ा, लेकिन यह वृद्धि मुख्य रूप से उन इलाकों में हुई जो सरकारी रिकॉर्ड में जंगल के रूप में दर्ज नहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इस बढ़ोतरी का करीब 97% हिस्सा खेतों के आसपास, गांवों के पास या खाली पड़ी जमीनों से आया, न कि घने और प्राकृतिक जंगलों से।
2019 से 2023 के बीच भी यही रुझान जारी रहा। इस दौरान पेड़ों की संख्या में इजाफा तो हुआ, लेकिन ज्यादातर वृद्धि खुले जंगलों में देखी गई, जहां पेड़ अक्सर खेती के मकसद से लगाए जाते हैं, जैसे लकड़ी, कागज या अन्य वाणिज्यिक उपयोग के लिए। ये पेड़ प्राकृतिक जंगलों की जैव-विविधता को बढ़ाने में उतने प्रभावी नहीं होते।
इसका सबसे बड़ा नुकसान यह रहा कि पुराने और मध्यम घने जंगल, जो जैव-विविधता के लिए महत्वपूर्ण हैं और कई तरह के जानवरों व पौधों का घर हैं, धीरे-धीरे कम होते गए। खासकर वे जंगल जो इंसानी बस्तियों के नजदीक हैं, वहां यह कमी ज्यादा देखी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि पेड़ों की संख्या बढ़ने के बावजूद असली जंगलों की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि ये जंगल जैव-विविधता और पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी हैं।
पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि अगर प्राकृतिक जंगलों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया, तो जैव-विविधता के नुकसान के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। सरकार और पर्यावरण संगठनों से मांग की जा रही है कि प्राकृतिक जंगलों के संरक्षण और पुनर्जनन के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।