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यमुना नदी में जहरीला झाग: सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट ने बढ़ाया प्रदूषण का स्तर

by reporter
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दिल्ली: इन दिनों यमुना नदी में जहरीले सफेद झाग का दिखना एक बड़ी समस्या बन गया है, जिसे सैटेलाइट इमेजरी में भी देखा गया है। तस्वीरों में दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के ओखला क्षेत्र में, दो बैराजों के पास, लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर यमुना में ये झाग बहता दिखाई दे रहा है। यह झाग सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट (औद्योगिक अपशिष्ट) के कारण बनता है, जो यमुना नदी में सीधे गिरता है।

यमुना में जहरीले झाग बनने के कारण

यमुना नदी, जो हिमालय से निकलकर 1376 किलोमीटर की दूरी तय करती है और भारत के कई राज्यों से होकर गुजरती है, गंगा की एक सहायक नदी है। लेकिन दिल्ली में यह नदी इतने प्रदूषण से घिरी हुई है कि इसका पानी अब नहाने या खेतों की सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

ओखला बैराज के पास झाग बनने के कई कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण है कि इस क्षेत्र में जलकुंभी (वॉटर हायसिंथ) मौजूद है, जो सर्फेक्टेंट छोड़ती है, जिससे झाग बनता है। इसके अलावा, दिल्ली के 18 बड़े नालों से निकलने वाला सीवेज बिना ट्रीटमेंट के सीधे यमुना में मिल जाता है।

समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब उत्तर प्रदेश के चीनी और कागज मिलों से निकलने वाला औद्योगिक कचरा हिंडन नहर में गिरता है, जो आगे चलकर यमुना में मिलती है। यह कचरा फॉस्फेट और डिटर्जेंट से युक्त होता है, जो यमुना के पानी में झाग बनाता है और नदी पर जहरीले सफेद झाग की चादर बनाता है।

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यमुना की हालत: एक ‘मृत’ नदी

विशेषज्ञों ने दिल्ली में यमुना को ‘मृत’ घोषित कर दिया है। इसका मतलब है कि इस नदी के पानी में कोई जलीय जीव जीवित नहीं रह सकते। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिक फणींद्र पति के अनुसार, यमुना के पानी में तापमान बढ़ने के कारण पानी में मौजूद रोगाणु मर जाते हैं, और इसका कारण है औद्योगिक कचरे का सीधा नदी में गिरना।

बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) पानी में कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को मापता है। अधिक बीओडी का मतलब है कि पानी में अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यदि बीओडी अधिक है, तो जलीय जीवों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे वे दम घुटने के कारण मर जाते हैं। सीवेज और पशुओं के मल के कारण पानी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे बीओडी भी बढ़ता है।

यमुना का पानी: मानकों से बहुत नीचे

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (DPCC) के आंकड़ों के अनुसार, यमुना के पानी के लिए बीओडी मानक 3 मिलीग्राम/लीटर है। हालांकि, हरियाणा के पल्ला में यह 2 मिलीग्राम/लीटर के साथ मानक के अनुरूप था, लेकिन असगरपुर में यह मानक से 28 गुना अधिक (85 मिलीग्राम/लीटर) और ओखला बैराज पर 17 गुना अधिक (50 मिलीग्राम/लीटर) था।

नदी के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन का मानक 5 मिलीग्राम/लीटर या उससे अधिक है। यह सिर्फ पल्ला और वजीराबाद में मानक के अनुरूप पाया गया, लेकिन आईएसबीटी ब्रिज, निजामुद्दीन ब्रिज, ओखला बैराज और असगरपुर में यमुना के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा शून्य थी। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में नदी का पानी इतना प्रदूषित है कि इसमें जलीय जीवन पनप नहीं सकता।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

यमुना में बढ़ते प्रदूषण का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। यमुना का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि इसे पीना तो दूर, नहाने या सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह जहरीला झाग हवा में भी मिल जाता है और लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है।

बीएचयू के वैज्ञानिक फणींद्र पति कहते हैं, “भारत में, जहां नदियों को मां के रूप में पूजा जाता है, वहां यमुना में जहरीले झाग को देखकर दुख होता है।” पर्यावरणविद विमलेंदु झा कहते हैं, “मानसून के बाद का मौसम, स्थिर वातावरण और बढ़ता तापमान यमुना में झाग बनने के लिए अनुकूल स्थिति बनाता है। अक्टूबर में तापमान के गिरने से यह झाग ठहर जाता है और हवा में हानिकारक कार्बनिक पदार्थ छोड़ता है, जिससे वायु भी प्रदूषित हो जाती है।”

यमुना में मौजूद झाग न केवल जल प्रदूषण का संकेत है बल्कि यह हवा में हानिकारक कार्बन कण भी छोड़ता है, जो सांस की समस्याएं, एलर्जी और अन्य बीमारियों का कारण बन सकते हैं। इन प्रदूषकों के कारण स्थानीय निवासियों में सांस की बीमारियों, त्वचा संबंधी समस्याओं और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ गया है।

यमुना के प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए जरूरी कदम

यमुना को साफ और सुरक्षित बनाने के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले, दिल्ली के नालों से निकलने वाले सीवेज का ट्रीटमेंट जरूरी है, ताकि गंदा पानी सीधे नदी में न मिले। औद्योगिक कचरे को नियंत्रित करने और इसे ट्रीटमेंट के बाद ही नदी में गिराने की सख्त व्यवस्था होनी चाहिए।

सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर जल स्रोतों की सफाई, प्रदूषण को रोकने और लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करना होगा। जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जाता, यमुना में इस तरह का प्रदूषण बना रहेगा और यह न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरा पैदा करता रहेगा।

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