भारत में मुंह का कैंसर तेजी से फैल रहा महामारी बन चुका है। हर साल 1.44 लाख नए मामले दर्ज हो रहे हैं, जबकि 80,000 लोग इसकी चपेट में जान गंवा रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से 62 प्रतिशत मामलों के पीछे खैनी, जर्दा, तंबाकू और शराब की घातक जोड़ी जिम्मेदार है। महाराष्ट्र के सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी और होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के नए अध्ययन ने इस खतरे को बेनकाब किया है, जो ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन के अनुसार, रोजाना महज नौ ग्राम शराब—यानी एक स्टैंडर्ड ड्रिंक या एक पैग—मुंह के कैंसर (बकल म्यूकोसा) का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। शराब न पीने वालों की तुलना में पीने वालों में यह जोखिम 68 प्रतिशत अधिक है। ब्रांडेड शराब से 72 प्रतिशत, जबकि देसी दारू जैसे महुआ, चुल्ली या अपोंग से तो 87 प्रतिशत तक उछल जाता है।
सबसे खतरनाक तो तब होता है जब शराब के साथ तंबाकू चबाया जाए—इससे खतरा चार गुना से भी ज्यादा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शराब में मौजूद इथेनॉल मुंह की नरम परत को कमजोर कर देता है, जिससे तंबाकू के कैंसरकारी तत्व आसानी से रक्तप्रवाह में घुस जाते हैं। देसी शराब में मेथनॉल और एसीटाल्डिहाइड जैसे विषैले पदार्थ इस खतरे को और भयावह बना देते हैं।
यह अध्ययन 2010 से 2021 तक देश के पांच कैंसर केंद्रों पर आधारित है, जिसमें 1,803 कैंसर रोगियों और 1,903 स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना की गई। ज्यादातर मरीज 25-45 साल के युवा थे, जिनमें से 46 प्रतिशत इसी आयु वर्ग से थे। ग्रामीण इलाकों से आने वाले मरीजों में शराब की औसत खपत 37 ग्राम प्रतिदिन थी, जबकि स्वस्थ लोगों में 29 ग्राम। तंबाकू की लत की अवधि भी मरीजों में 21 साल तक थी। अध्ययन में 11 ब्रांडेड और 30 स्थानीय शराबों का विश्लेषण किया गया।
भारत में मुंह का कैंसर पुरुषों में दूसरा सबसे आम है, जिसकी दर 15 प्रति लाख तक पहुंच चुकी है। दुखद यह है कि इससे पीड़ितों में से केवल 43 प्रतिशत ही पांच साल जीवित रह पाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि 11.5 प्रतिशत मामले सीधे शराब से जुड़े हैं, जो मेघालय, असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 14 प्रतिशत तक है।
शराब से जुड़े नियम राज्यवार भिन्न हैं, लेकिन देसी शराब का बाजार अनियंत्रित है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि शराब की कोई सुरक्षित मात्रा नहीं। यदि शराब-तंबाकू की आदतें छुड़ाई जाएं, तो मुंह के कैंसर को काफी हद तक रोका जा सकता है। जागरूकता अभियान और सख्त नियमों की जरूरत है। स्वास्थ्य मंत्रालय को तुरंत कदम उठाने चाहिए।
