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तीन साल की बाघिन ‘ज़ीनत’ ने किया पहला शिकार, वन विभाग ने तेज किए पकड़ने के प्रयास

by kishanchaubey
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Zeenat First Kill : ओडिशा के सिमिलिपाल नेशनल पार्क से भटककर आई तीन साल की बाघिन ज़ीनत अब तक वन विभाग के प्रयासों को चकमा दे रही है। पिछले कुछ दिनों से वह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के बंदवान वन क्षेत्र में देखी गई है।

पहला शिकार:
मंगलवार को वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ज़ीनत ने जंगल में एक बकरी का शिकार किया।

  • मुख्य वन्यजीव संरक्षक देबल रॉय ने कहा, “बाघिन ने बकरी के कुछ हिस्से खाए हैं। वह काफी भूखी लग रही थी। हमने शिकार की गई बकरी के अवशेष को उसकी ओर से जाल के रूप में उपयोग करने की योजना बनाई है। उम्मीद है कि वह इसे खत्म करने के लिए लौटेगी।”

बाघिन को पकड़ने के प्रयास:

  1. चालाक बाघिन:
    • ज़ीनत ने वन विभाग द्वारा रखे गए चारे (बैत) को छुआ तक नहीं।
    • अधिकारियों का मानना है कि वह पहले भी बैत के जरिए पकड़ी जा चुकी है और इसलिए सतर्क है।
  2. स्मार्ट कैमरों की तैनाती:
    • बाघिन की हरकतों पर नज़र रखने के लिए क्षेत्र में छह स्मार्ट कैमरे लगाए गए हैं।
    • ये कैमरे रात्रि दृष्टि और रियल टाइम इमेजरी की सुविधा से लैस हैं।
    • ओडिशा के वन विभाग के साथ समन्वय से पुरुलिया में टीम ज़मीन पर काम कर रही है।
  3. टीम की रणनीति:
    • बाघिन को 60 मीटर की दूरी से नजदीक आते ही पकड़ने की योजना है।
    • टीम ने बेहोशी के इंजेक्शन के साथ जाल बिछाया है।

ग्रामीणों को सतर्क किया गया:

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  • बकरी का झुंड:
    • ज़ीनत ने जिन बकरियों पर हमला किया, वे पास के ग्रामीण की थीं।
    • इनमें से दो बकरियाँ मारी गईं, जबकि एक घायल होकर भाग निकली।
    • ग्रामीणों को जंगल के पास अपने जानवरों को चराने से बचने की सलाह दी गई है।

बाघिन के लिए बंदवान का जंगल अनुकूल नहीं:

  • इस क्षेत्र में:
    • शिकार का आधार (प्रेय बेस) बहुत कम है।
    • जंगल में उचित आवरण नहीं है, जिससे बाघिन लगातार स्थान बदल रही है।
  • अधिकारियों के अनुसार, “बाघिन इंसानों के संपर्क से बच रही है। टीम के करीब आते ही वह भाग जाती है।”

ज़ीनत की सुरक्षा और बचाव का महत्व:
वन विभाग का मानना है कि बाघिन को सुरक्षित रूप से पकड़कर उपयुक्त आवास में स्थानांतरित किया जाएगा। यह कदम न केवल बाघिन की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि मानव-पशु संघर्ष को भी रोकने में मदद करेगा।

बाघ संरक्षण और ग्रामीण सहभागिता से इस प्रकार की चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।

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