अगले महीने, दुनिया का ध्यान अजरबैजान की राजधानी बकू की ओर होगा, जहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के 29वें सम्मेलन का आयोजन होगा। विडंबना यह है कि जिस कैस्पियन सागर के किनारे बकू स्थित है, वह मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण सूखने के कगार पर है। हाल ही में एक ईरानी अधिकारी ने चेतावनी दी कि अगले 20 वर्षों में कैस्पियन सागर का एक चौथाई हिस्सा सूख सकता है।
कैस्पियन सागर: दुनिया का सबसे बड़ा बंद जल निकाय
कैस्पियन सागर केवल एक सामान्य जल निकाय नहीं है; यह दुनिया का सबसे बड़ा बंद जल निकाय है, जिसका कोई सीधा संबंध महासागरों से नहीं है, जिसे वैज्ञानिक रूप से ‘एंडोरहिक’ कहा जाता है। इसके सूखने से पूरे यूरेशिया के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
क्या है कैस्पियन सागर को सूखने का कारण?
कैस्पियन सागर यूरेशिया के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें रूस, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान और काकेशस पर्वत शामिल हैं। 2024 में अज़ेरी और कज़ाख वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कैस्पियन सागर के सूखने का मुख्य कारण मानव-जनित जलवायु परिवर्तन है। इस अध्ययन के अनुसार, कैस्पियन सागर के जल स्तर में उतार-चढ़ाव काफी हद तक उन नदियों पर निर्भर करता है जो इसमें गिरती हैं, विशेष रूप से वोल्गा, कूरा, उराल, तेरेक और सुलक नदियाँ।
वोल्गा नदी, जो यूरोप की सबसे लंबी नदी है, अकेले ही कैस्पियन सागर में आने वाले जल का 80% से अधिक हिस्सा लाती है।
कैस्पियन सागर का भविष्य: क्या यह पूरी तरह से सूख जाएगा?
वैज्ञानिकों ने 1938 से 2020 के बीच वोल्गा नदी के हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तनों और कैस्पियन सागर के स्तर पर उनके प्रभाव का अध्ययन किया। 1977 से 2020 के बीच समुद्र के स्तर में 133 सेंटीमीटर की गिरावट देखी गई। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रमुख कारक है।
अध्ययन के अनुसार, हाल के वर्षों में वोल्गा नदी के जल प्रवाह में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिससे कैस्पियन सागर का जलस्तर घट रहा है। इसके अलावा, पूर्वी दिशा से चलने वाली गर्म और शुष्क हवाओं ने सागर में वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेज कर दिया है।
कैस्पियन सागर का सूखना: यूरेशिया के लिए एक विनाशकारी खतरा
अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने अक्टूबर की शुरुआत में कैस्पियन सागर के “विनाशकारी” संकुचन पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और इस मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी चर्चा की थी। सोवियत संघ ने अरल सागर को अपने पर्यावरणीय नीतियों के कारण लगभग खत्म कर दिया था, और ईरान में भी लेक उर्मिया का सूखना देखा गया है।
अगर कैस्पियन सागर के साथ भी ऐसा ही हुआ, तो इसका प्रभाव न केवल यूरेशिया, बल्कि भारत पर भी पड़ेगा। कैस्पियन सागर के ऊपर उठने वाले स्थानीय तूफानों से भारत में आने वाले वेस्टर्न डिस्टर्बेंस उत्पन्न होते हैं, जो भारत की जलवायु और वर्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
बकू में होने वाले UNFCCC सम्मेलन में इस गंभीर समस्या पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। अगर इस पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया, तो यह समूचे क्षेत्र के लिए एक अपोकैलिप्टिक संकट साबित हो सकता है।