वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि दुनिया भर में कीटों की संख्या और उनकी प्रजातियों की विविधता तेजी से कम हो रही है। जर्मनी की जूलियस मैक्सिमिलियंस यूनिवर्सिटी वुर्जबर्ग (जेएमयू) के एक नए शोध में सामने आया है कि मधुमक्खियां इस बदलाव से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी बी: बायोलॉजिकल साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
क्या है कारण?
शोधकर्ताओं के अनुसार, 1970 के दशक से कीटों की संख्या में कमी आ रही है। इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
- आवास का नुकसान: कृषि और शहरीकरण के कारण जंगल, घास के मैदान जैसे प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन: दिन और रात के बढ़ते तापमान का कीटों पर बुरा असर पड़ रहा है। खासकर गर्म रातें मधुमक्खियों के लिए नया खतरा बन रही हैं।
मधुमक्खियों पर सबसे ज्यादा असर
बवेरिया के 179 स्थानों पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि मधुमक्खियों की संख्या और विविधता में भारी कमी आई है। जंगलों में रहने वाली मधुमक्खियां गर्मी को सहन कर लेती हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में उनकी संख्या 65% तक कम हो गई है।
शोध में यह भी सामने आया कि रात के बढ़ते तापमान का कीटों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि रात का तापमान दिन की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है।
कृषि और पर्यावरण पर खतरा
कीट खाद्य श्रृंखला और पर्यावरण के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। मधुमक्खियां परागण में मदद करती हैं, जो फसलों के लिए जरूरी है। वहीं, कुछ कीट हानिकारक कीटों को नियंत्रित करते हैं। लेकिन खुले कृषि क्षेत्रों में, जहां प्राकृतिक आवास कम हैं, ये कीट मुश्किल में हैं।
इससे फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। शोध में पाया गया कि जिन क्षेत्रों में कृषि भूमि के साथ-साथ जंगल या घास के मैदान हैं, वहां कीटों की स्थिति बेहतर है।
शोध के तीन बड़े निष्कर्ष
- प्राकृतिक आवासों में फायदा: जंगल और घास के मैदानों में दिन का बढ़ता तापमान मधुमक्खियों की संख्या बढ़ा सकता है। इसलिए शहरी और कृषि क्षेत्रों में प्राकृतिक आवास बनाना जरूरी है।
- गर्म रातों का खतरा: गर्म रातें सभी क्षेत्रों में मधुमक्खियों की संख्या कम कर रही हैं। इस नए खतरे को समझने के लिए और शोध की जरूरत है।
- जटिल प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग का असर अलग-अलग कीटों पर अलग तरह से पड़ता है, जिससे खाद्य श्रृंखला और परागण जैसे महत्वपूर्ण कार्य बाधित हो सकते हैं।
क्या है समाधान?
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समस्या से निपटने के लिए हमें तुरंत कदम उठाने होंगे:
- प्राकृतिक आवासों को बचाना और नए क्षेत्र बनाना।
- जैविक खेती को बढ़ावा देना और कीटनाशकों का कम उपयोग करना।
- ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण।
- लोगों में जागरूकता फैलाना और वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना।
आगे की राह
यह शोध पर्यावरण और कृषि के लिए एक चेतावनी है। अगर हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो कीटों की कमी का असर न केवल प्रकृति, बल्कि खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। मधुमक्खियों और अन्य कीटों को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग और त्वरित कार्रवाई की जरूरत है।