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मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ तक 400 किमी की यात्रा करने वाली बाघिन ने वन्यजीव संरक्षण में जगाई नई उम्मीदें

by reporter
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मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से छत्तीसगढ़ के अचनकमार टाइगर रिजर्व तक 400 किलोमीटर की दूरी तय करने वाली एक बाघिन ने वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में नई उम्मीदें पैदा की हैं। यह सफर दो महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर – पेंच-कान्हा कॉरिडोर और कान्हा-अचनकमार कॉरिडोर – के सुरक्षित होने का संकेत देता है, जो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के तीन प्रमुख टाइगर रिजर्व्स को आपस में जोड़ते हैं।

यह खुलासा तब हुआ जब वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII, देहरादून) के टाइगर सेल ने अचनकमार टाइगर रिजर्व में मौजूद एक बाघिन की पहचान की। यह बाघिन इस रिजर्व की मूल निवासी नहीं थी। WII ने इस जानकारी को नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के साथ साझा किया, जिसने मध्य भारत के विभिन्न टाइगर रिजर्व्स के आंकड़ों से इसका मिलान किया। जांच के दौरान पता चला कि बाघिन 2022 में मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में कैमरा ट्रैप में कैद हुई थी और 2023 की सर्दियों से लगातार अचनकमार में मौजूद है।

इस बात की प्रबल संभावना जताई गई है कि बाघिन ने सुरक्षित आवास की तलाश में 400 किमी का लंबा सफर तय किया। इस सफर के दौरान वह दो प्रमुख टाइगर कॉरिडोर से गुजरी, जो मध्य प्रदेश के पेंच और कान्हा टाइगर रिजर्व को छत्तीसगढ़ के अचनकमार रिजर्व से जोड़ते हैं।

बाघ संरक्षण के लिए अहम कदम

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पेंच टाइगर रिजर्व के उप निदेशक, रजनीश कुमार सिंह ने इसे बाघ संरक्षण के लिहाज से बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा, “सुरक्षित टाइगर कॉरिडोर और आवास बाघ संरक्षण के लिए सबसे जरूरी हैं। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि इन कॉरिडोर पर शिकार और अन्य खतरों का दबाव नहीं है। यह वन विभाग की लगातार पेट्रोलिंग और सुरक्षा उपायों का परिणाम है।”

NH-44 माइटिगेशन योजना की सफलता

इसके अलावा, इस घटना ने भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए बनाई गई पहली राष्ट्रीय राजमार्ग माइटिगेशन योजना की सफलता को भी उजागर किया है। NH-44 के तहत 29 किलोमीटर लंबा एक एलिवेटेड खंड बनाया गया है, जो पेंच और कान्हा टाइगर रिजर्व के बीच से गुजरता है। इस संरचना के जरिए जानवर सुरक्षित रूप से इसके नीचे से गुजर सकते हैं। इस कॉरिडोर के चलते बाघिन ने अपनी यात्रा पूरी की, जो NH-44 माइटिगेशन योजना की बड़ी सफलता को दर्शाता है।

यह घटना न केवल बाघ संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह भारत के वन्यजीव और उनके आवास की सुरक्षा के लिए उठाए गए उपायों की भी सफलता को रेखांकित करती है।

पर्यावरणीय संतुलन का संकेत

यह लंबी यात्रा दर्शाती है कि दो प्रमुख टाइगर कॉरिडोर—पेंच-कान्हा और कान्हा-अचनकमार—पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सक्षम हैं। इन कॉरिडोर के सुरक्षित होने से यह स्पष्ट है कि वन्यजीव, विशेषकर बाघ, बिना मानवीय हस्तक्षेप या अवरोध के प्राकृतिक रूप से अपने नए आवासों की खोज में स्वतंत्र रूप से यात्रा कर सकते हैं। यह वनस्पति, जल स्रोतों और पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को दर्शाता है, जो इस तरह की प्रजातियों की निर्बाध आवाजाही को संभव बनाता है।

वन्यजीव संरक्षण के लिए जागरूकता

बाघिन की यह यात्रा यह भी साबित करती है कि उचित संरक्षण और सुरक्षा उपायों से न केवल बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है, बल्कि वे सुरक्षित आवासों में भी विस्तार कर रहे हैं। इस प्रकार की घटनाएं वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर प्रयासों को तेज करने में मदद करती हैं।

पर्यावरणीय पुनर्स्थापन का प्रतीक

बाघिन का यह सफर वन क्षेत्र के पर्यावरणीय पुनर्स्थापन का भी प्रतीक है। यह संकेत देता है कि वन क्षेत्रों में बाघों के लिए सुरक्षित आवास और उनके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बहाल हो रही हैं। इससे आने वाले समय में पर्यावरणीय पुनर्स्थापन और वन्यजीव संरक्षण के बड़े प्रयासों की आवश्यकता और महत्ता को भी रेखांकित किया जा सकता है।

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