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लाल मुकुट वाले कछुए की वापसी, गंगा के किनारों पर फिर से खिल रही है जीवन की उम्मीद

by kishanchaubey
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The return of the red-crowned turtle

गंगा नदी के तट, जो कभी लुप्तप्राय कछुओं का घर हुआ करते थे, अब एक बार फिर जैव विविधता के संरक्षण की ओर बढ़ रहे हैं। खास तौर पर लाल मुकुट वाले कछुए (रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल) की गंगा में वापसी ने नई उम्मीद जगाई है।

यह कछुआ, जिसकी संख्या पहले तेजी से घट रही थी, अब गंगा के पानी में फिर से दिखाई देने लगा है। यह न केवल इन प्राचीन जीवों के लिए, बल्कि गंगा के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के लिए एक बड़ा कदम है।

लाल मुकुट वाला कछुआ: कौन हैं ये?

भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के अनुसार, लाल मुकुट वाला कछुआ भारत, बांग्लादेश और नेपाल का मूल निवासी है। यह प्रजाति पहले गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में बहुतायत में पाई जाती थी। लेकिन समय के साथ इनकी संख्या कम होती गई। भारत में केवल राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य में ही इनकी कुछ आबादी बची थी, लेकिन वहां भी इनका आवास खतरे में है।

लाल मुकुट वाले कछुए का खोल 56 सेंटीमीटर तक लंबा हो सकता है और वजन 25 किलोग्राम तक पहुंच सकता है। नर कछुए मादा की तुलना में छोटे होते हैं और उनकी लंबाई मादा की आधी होती है। इनका सिर मध्यम आकार का होता है, जिसमें थोड़ा उभरा हुआ थूथन होता है। इनका कवच मजबूत और घुमावदार होता है। युवा कछुओं में कवच का निचला हिस्सा (प्लैस्ट्रॉन) कोणीय होता है।

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यह मीठे पानी का कछुआ है, जो गहरी और बहती नदियों में रहता है। ये जलीय पौधों को अपना भोजन बनाते हैं। मादा कछुआ हर साल मार्च-अप्रैल में 11 से 30 अंडे देती है। यह प्रजाति गंभीर रूप से लुप्तप्राय है और इसे 2018 में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में शामिल किया गया।

गंगा में कछुओं की वापसी: कैसे हुआ यह संभव?

जल शक्ति मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, TSAFI परियोजना के तहत 2020 में उत्तर प्रदेश के हैदरपुर वेटलैंड कॉम्प्लेक्स (HWC) में कछुओं की प्रजातियों और उनकी संख्या का विस्तृत अध्ययन किया गया। इसके बाद प्रयागराज के पास गंगा के किनारे बने नए कछुआ अभयारण्य में भी उनके आवास का अध्ययन किया गया।

इन अध्ययनों से पता चला कि हैदरपुर वेटलैंड में नौ कछुआ प्रजातियां मौजूद हैं, जबकि प्रयागराज में पांच प्रजातियों के सबूत मिले। लेकिन सबसे खास बात यह थी कि लाल मुकुट वाले कछुए की कोई ठोस आबादी पूरे गंगा बेसिन में नहीं दिखी। यह उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजाति थी।

कछुओं को फिर से बसाने की पहल

26 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के गढ़ैता कछुआ संरक्षण केंद्र से 20 लाल मुकुट वाले कछुओं को हैदरपुर वेटलैंड में छोड़ा गया। इन कछुओं की निगरानी के लिए उन्हें सोनिक टैग लगाए गए, ताकि उनके प्रवास और व्यवहार पर नजर रखी जा सके।

इन कछुओं को दो समूहों में बांटा गया:

  1. पहला समूह: हैदरपुर वेटलैंड में बैराज के ऊपरी हिस्से में छोड़ा गया।
  2. दूसरा समूह: गंगा की मुख्य धारा में छोड़ा गया।

इसका मकसद यह पता लगाना था कि कछुओं को दोबारा बसाने के लिए कौन सा तरीका सबसे बेहतर है। यह पहल ‘सॉफ्ट’ और ‘हार्ड’ रिलीज रणनीति के तहत की गई, जो गंगा में इस प्रजाति को फिर से स्थापित करने का पहला प्रयास है।

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