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केरल में संक्रामक बीमारियों की बढ़ती चुनौती: मजबूत निगरानी और पारदर्शिता की भूमिका

by kishanchaubey
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केरल, जो अपनी मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जाना जाता है, हाल के वर्षों में संक्रामक और जूनोटिक बीमारियों का केंद्र रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य की सख्त निगरानी, बेहतर जांच और पारदर्शी स्वास्थ्य प्रणाली के कारण बीमारियों का जल्दी पता चलता है, जिससे मामले ज्यादा सामने आते हैं। इसके अलावा, भूमि उपयोग में बदलाव, जनसंख्या घनत्व, और उष्णकटिबंधीय जलवायु भी इन बीमारियों के प्रसार में योगदान दे रहे हैं।

मजबूत निगरानी और बीमारी का पता लगाने की क्षमता
केरल में कोविड-19 का पहला मामला जनवरी 2020 में त्रिशूर जिले में दर्ज हुआ था, जब वुहान से लौटी एक 20 वर्षीय महिला संक्रमित पाई गई। इसके बाद, 2018 से 2024 तक निपाह वायरस के कई प्रकोप देखे गए।

हाल ही में, सितंबर 2024 में मलप्पुरम में निपाह से एक मरीज की मौत हुई, जिसका पता डेथ ऑडिटिंग के जरिए चला। कोझीकोड मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अनीश टीएस कहते हैं, “केरल की निगरानी प्रणाली इतनी मजबूत है कि छोटे क्लिनिक से लेकर बड़े अस्पतालों तक, हर स्तर पर बीमारी का पता लगाया जाता है।”

इसी तरह, दक्षिण एशिया में मंकीपॉक्स का क्लेड 1बी वैरिएंट सबसे पहले केरल में ही पाया गया। यह मामला संयुक्त अरब अमीरात से लौटे एक 38 वर्षीय व्यक्ति में मिला।

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डॉ. अनीश के अनुसार, “केरल में बीमारियों की पहचान इसलिए होती है क्योंकि हमारी टेस्टिंग और निगरानी व्यवस्था बेहद प्रभावी है।” अगस्त 2024 में इन्फ्लूएंजा ए (एच1एन1) से केरल में 34 मौतें हुईं, जो पंजाब (41) और गुजरात (28) के बाद सबसे ज्यादा थीं।

यात्रा और जनसंख्या घनत्व का प्रभाव
तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज के डॉ. अरविंद आर बताते हैं कि केरल में विदेशों से आने-जाने वाले लोगों की संख्या अधिक है, जिससे बीमारियां बाहर से आती हैं। केरल प्रवासन सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, राज्य से 22 लाख लोग विदेशों में रहते हैं, और 40 लाख प्रवासी श्रमिक अन्य राज्यों से यहां आते हैं।

उच्च जनसंख्या घनत्व (860 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) और वृद्ध आबादी (16.5%) भी बीमारियों के प्रसार को बढ़ावा देते हैं। पश्चिमी घाट के पास मानव-पशु संपर्क के कारण जूनोटिक बीमारियां, जैसे निपाह, तेजी से फैलती हैं।

जलवायु और पारिस्थितिक कारक
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की लक्ष्मी रामकृष्णन बताती हैं कि केरल की उष्णकटिबंधीय जलवायु मच्छर जनित बीमारियों जैसे डेंगू और वेस्ट नाइल के लिए अनुकूल है। जलवायु परिवर्तन और बाढ़ के कारण पानी का जमाव मच्छरों के प्रजनन को बढ़ाता है।

शहरीकरण और वनों की कटाई से चमगादड़ों के आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे निपाह जैसे वायरस मनुष्यों तक पहुंच रहे हैं। केरल वन अनुसंधान संस्थान के श्रीहरि रमन कहते हैं, “चमगादड़ों की प्रजातियां मानव बस्तियों के करीब आ रही हैं, जिससे निपाह का खतरा बढ़ता है।”

स्वास्थ्य सेवाओं में उत्कृष्टता
नीति आयोग की 2023 की रिपोर्ट में केरल को स्वास्थ्य सूचकांकों में शीर्ष राज्य बताया गया। आर्द्रम मिशन के तहत, राज्य ने 2017-18 में 170 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को परिवार स्वास्थ्य केंद्रों में बदला और बाद में 500 और सेंटर बनाए।

निपाह और मंकीपॉक्स के प्रकोपों में त्वरित ट्रेसिंग, नियंत्रण क्षेत्र घोषित करना, और स्कूल-थिएटर बंद करना जैसे कदम उठाए गए। वन हेल्थ कार्यक्रम के तहत, केरल ने चार जिलों में बीमारी जांच पूरी की और अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस पर रिसर्च शुरू की।

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