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जलवायु आपातकाल और समुद्री न्याय: छोटे मछुआरों और तटीय समुदायों पर प्रभाव

by kishanchaubey
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जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपात स्थितियों के बीच समुद्री न्याय पर चर्चा अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में एक महत्वपूर्ण विषय बन गई है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), समुद्र के कानून पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (ITLOS), और अंतर-अमेरिकी मानवाधिकार न्यायालय (IACtHR) ने इस मुद्दे पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। यह बहस इस बात पर केंद्रित है कि जलवायु आपातकाल के संदर्भ में राज्यों की जिम्मेदारियां क्या होनी चाहिए और इसका तटीय और द्वीपीय समुदायों, विशेष रूप से छोटे मछुआरों पर क्या प्रभाव पड़ता है।

समुद्री न्याय का महत्व

समुद्री न्याय का अर्थ है समुद्र और इसके संसाधनों से जुड़े पर्यावरणीय और जलवायु प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करना। इसका उद्देश्य उन तटीय और द्वीपीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है जो समुद्री जैव विविधता और समुद्री प्रदूषण से सीधे प्रभावित होते हैं। विशेष रूप से, विकसित देशों की जिम्मेदारी को रेखांकित किया गया है, जो जलवायु आपातकाल के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, जबकि छोटे द्वीप राष्ट्र (SIDS) और तटीय समुदाय इसके सबसे अधिक शिकार होते हैं।

समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन

ITLOS ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह माना कि ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को समुद्री पर्यावरण का प्रदूषण माना जाना चाहिए।

  • समुद्री प्रदूषण के प्रभाव: यह समुद्री जीवन और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, पानी की गुणवत्ता खराब करता है और समुद्री गतिविधियों जैसे मछली पकड़ने को प्रभावित करता है।
  • GHGs और समुद्र पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण महासागर गर्म हो रहे हैं, ऑक्सीजन की कमी हो रही है और अम्लीय हो रहे हैं। यह मछलियों के प्रवास और प्रजातियों की विविधता को बाधित करता है।

छोटे मछुआरों और तटीय समुदायों पर प्रभाव

छोटे मछुआरों और तटीय समुदायों की आजीविका समुद्र और उसकी जैव विविधता पर निर्भर करती है।

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  • खाद्य सुरक्षा: मछलियों की संख्या कम होने से इन समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा खतरे में है।
  • आजीविका पर संकट: मछलियों के प्रवास और प्रजातियों के नुकसान से इन समुदायों के पारंपरिक कार्यों और सांस्कृतिक पहचान पर संकट गहराता है।
  • अधिकारों का उल्लंघन: सतत विकास लक्ष्य (SDG 14) के तहत इनके समुद्री जैव विविधता और उचित बाजार तक पहुंच के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर असर: जहरीली गैसों और समुद्री प्रदूषण से तटीय क्षेत्रों में लोगों को श्वसन संबंधी बीमारियां और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं।
  • पर्यावरणीय क्षति: प्रदूषण से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे समुद्र की क्षमता प्रभावित हो रही है।

समुद्री न्याय और कानूनी प्रक्रिया

ICJ और IACtHR के समक्ष मामलों में यह ध्यान दिया जा रहा है कि:

  1. राज्यों को समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए।
  2. तटीय और द्वीपीय समुदायों के अधिकारों को विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिए।
  3. छोटे मछुआरों को समुद्र के सतत प्रबंधन और संरक्षण में भाग लेने का अधिकार मिलना चाहिए।

आगे की राह

जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट के समाधान के लिए:

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को समझने और उससे निपटने के लिए विज्ञान का उपयोग करना होगा।
  • समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा: समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए राज्यों और समुदायों को मिलकर काम करना होगा।
  • न्यायसंगत नीतियां: छोटे मछुआरों और तटीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपूर्ण और समावेशी नीतियों को लागू करना जरूरी है।

यह समय है कि समुद्री न्याय को पर्यावरणीय और मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से समझा जाए और इसे जलवायु आपातकाल के समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए।

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