Ganga Dolphin: असम में पहली बार गंगा नदी की डॉल्फिन को टैग किया गया है, जो राज्य के वन्यजीव संरक्षण के इतिहास में एक बड़ी उपलब्धि है।यह टैगिंग परियोजना केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और नेशनल CAMPA (क्षतिपूरक वनीकरण प्रबंधन और योजना प्राधिकरण) के सहयोग से की गई। इसे वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के नेतृत्व में असम वन विभाग और असम स्थित वन्यजीव NGO ‘आरण्यक’ के साथ मिलकर पूरा किया गया।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस उपलब्धि की जानकारी अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर साझा करते हुए लिखा,
“असम में पहली बार गंगा डॉल्फिन की टैगिंग की खबर साझा करते हुए खुशी हो रही है—यह भारत और इस प्रजाति के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है!”
उन्होंने आगे बताया, “MoEFCC और नेशनल CAMPA द्वारा वित्तपोषित इस परियोजना का नेतृत्व वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कर रहा है, और यह असम वन विभाग व आरण्यक के सहयोग से हमारी राष्ट्रीय जलीय प्राणी के संरक्षण को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।”
गंगा डॉल्फिन: संकट में जीवन
गंगा डॉल्फिन, जिसे “सोंस” भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख नदी प्रणालियों में कभी बड़ी संख्या में पाई जाती थी। लेकिन हाल के वर्षों में इसकी संख्या में भारी गिरावट आई है। प्रमुख कारणों में प्रदूषण, जल स्तर में कमी, शिकार और जलविद्युत परियोजनाएं शामिल हैं।
टैगिंग का उद्देश्य
गंगा डॉल्फिन की टैगिंग से इनकी जीवनशैली, प्रवासन के रास्ते, और इनके प्राकृतिक आवास पर पड़ने वाले खतरों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। इस डेटा का उपयोग इनकी सुरक्षा के लिए बेहतर रणनीति बनाने में किया जाएगा।
राष्ट्रीय जलीय प्राणी की पहचान
1982 में गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय प्राणी घोषित किया गया था। यह डॉल्फिन गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना और करनाफुली-संगू नदी प्रणालियों में पाई जाती है। गंगा डॉल्फिन न केवल भारत की जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह नदी की सेहत का भी सूचक है।
संरक्षण के प्रयास
गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें “नमामि गंगे” परियोजना भी शामिल है। इस टैगिंग परियोजना से न केवल असम में, बल्कि पूरे भारत में गंगा डॉल्फिन के संरक्षण को नई दिशा मिलेगी।
आगे की राह
इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि गंगा डॉल्फिन की संख्या बढ़ाने और उनके प्राकृतिक आवास को बचाने के प्रयास तेज होंगे। इस परियोजना के माध्यम से अन्य राज्यों को भी इस दिशा में काम करने की प्रेरणा मिलेगी।
गंगा डॉल्फिन का संरक्षण न केवल वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह नदियों की स्वच्छता और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने का प्रयास भी है।