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सुप्रीम कोर्ट ने NGT को दी चेतावनी: “अपनी राय समितियों पर आधारित न करें”

by kishanchaubey
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सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की कड़ी आलोचना की है कि उसने अपनी राय एक समिति पर आधारित कर दी और उसी आधार पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना ट्रिब्यूनल के दायित्वों और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।

“राय को आउटसोर्स करना गलत”: सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा:
“NGT एक ऐसा ट्रिब्यूनल है जिसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट, 2010 के तहत मामलों का निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से निपटारा करना है। इसे अपने समक्ष मौजूद तथ्यों और परिस्थितियों का विश्लेषण करके ही निर्णय देना चाहिए। NGT अपनी राय किसी समिति को ‘आउटसोर्स’ नहीं कर सकता और न ही केवल समिति की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय सुना सकता है।”

संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट का 2022 का फैसला

खंडपीठ ने 2022 के एक मामले (कंथा विभाग युवा कोली समाज परिवर्तन ट्रस्ट बनाम गुजरात राज्य) का उल्लेख किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि NGT को अपने न्यायिक कर्तव्यों को किसी विशेषज्ञ समिति को नहीं सौंपना चाहिए।

मामला: मेसर्स ग्रासिम इंडस्ट्रीज पर जुर्माना

इस मामले में NGT ने एक संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर मेसर्स ग्रासिम इंडस्ट्रीज पर जुर्माना लगाया। लेकिन,

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  1. कंपनी को इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया।
  2. NGT ने आदेश जारी करने से पहले कंपनी को कोई नोटिस भी नहीं दिया।

“बिना सुने दोषी ठहराना गलत”: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने NGT के इस दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा:
“यह ऐसा है जैसे किसी व्यक्ति को बिना सुने दोषी ठहरा दिया जाए।”

आदेश निरस्त, मामले की फिर से सुनवाई का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने NGT के आदेश को खारिज करते हुए मामले को दोबारा विचार के लिए ट्रिब्यूनल को भेज दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  • ट्रिब्यूनल को निष्पक्ष तरीके से मामले की जांच करनी चाहिए।
  • कोई भी प्रतिकूल आदेश पारित करने से पहले मेसर्स ग्रासिम इंडस्ट्रीज को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया जाए।

NGT की जिम्मेदारी पर जोर

सुप्रीम कोर्ट ने NGT को याद दिलाया कि यह एक कानूनी और न्यायिक निकाय है जिसे पर्यावरण से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार है। ऐसे में इसका फैसला तथ्यों और गहन जांच पर आधारित होना चाहिए, न कि केवल किसी समिति की राय पर।

इस फैसले से यह साफ है कि NGT जैसे ट्रिब्यूनल को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए और न्यायिक प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए। बिना सुनवाई के किसी पर जुर्माना लगाना या आदेश पारित करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

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