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राजस्थान में पवित्र वनों को संरक्षित करें: सुप्रीम कोर्ट

by kishanchaubey
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Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर को राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य के पवित्र वनों (जिन्हें ओरण, देव-वन, रुण्ड आदि नामों से जाना जाता है) की पहचान करे और उनका विस्तृत मैपिंग करते हुए उन्हें वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित करे। कोर्ट ने यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें राजस्थान सरकार की निष्क्रियता का उल्लेख किया गया था।

यह याचिका अमन सिंह, जो अलवर स्थित पर्यावरण संगठन क्रापविस (कृषि एवं पर्यावरण विकास संस्थान) के समन्वयक हैं, ने दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

  • पवित्र वनों की पहचान स्थानीय और सैटेलाइट मैपिंग के जरिए की जाए।
  • इन्हें ‘वन’ के रूप में वर्गीकृत किया जाए, जैसा कि 2005 में केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की सिफारिशों में कहा गया था।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इन्हें ‘सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र’ घोषित किया जाए।
  • इन वनों को बचाने और संरक्षित करने के लिए राज्य सरकार स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करे।
  • राजस्थान में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया जाए, जिसमें वन विभाग और राजस्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (MoEF&CC) के प्रतिनिधि, और एक सेवानिवृत्त वन संरक्षक शामिल हों।

पृष्ठभूमि

राजस्थान सरकार ने 2004 में पवित्र वनों की पहचान के लिए कपूर समिति बनाई थी। इस समिति ने रिपोर्ट दी थी कि 5 हेक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्र, जहां प्रति हेक्टेयर 200 से अधिक पेड़ हैं, उन्हें ‘देय वन’ (Deemed Forest) माना जाए।

बाद में, 2005 में CEC ने सुझाव दिया कि इन वनों को उनकी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व के आधार पर ‘वन’ घोषित किया जाए। हालांकि, छोटी और बिखरी हुई जमीन को वन क्षेत्र से बाहर रखा जा सकता है।

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2018 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया कि वह CEC की सिफारिशें लागू करे। लेकिन, पवित्र वनों की पहचान और अधिसूचना में देरी के कारण यह मामला फिर से कोर्ट में आया।

महत्व और संरक्षण की आवश्यकता

कोर्ट ने कहा कि पवित्र वनों की पहचान उनके आकार के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व के आधार पर होनी चाहिए।

  • इन वनों को ‘सामुदायिक वन संसाधन’ घोषित किया जाए, जिससे स्थानीय समुदायों की भूमिका को मान्यता मिले।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत इन क्षेत्रों के पारंपरिक रक्षकों को अधिकार दिए जाएं।
  • ग्राम सभाओं और स्थानीय संस्थानों को इन वनों की सुरक्षा, संसाधनों की निगरानी और अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने का अधिकार दिया जाए।

राजस्थान के पवित्र वन और उनकी चुनौतियां

  • राजस्थान में लगभग 25,000 पवित्र वन होने का अनुमान है।
  • वर्तमान में केवल 5,000 वनों की पहचान की गई है।
  • 2023 की राजस्थान वन नीति में ओरण और देव-वन संरक्षण के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं।

कोर्ट के सुझाव

  1. राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण:
    पर्यावरण मंत्रालय को देशभर के पवित्र वनों का सर्वेक्षण करना चाहिए।
  2. स्पष्ट सीमांकन:
    इन वनों की सीमा को चिह्नित किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि प्राकृतिक विकास के लिए उनकी सीमा में लचीलापन हो।
  3. नए नीतिगत ढांचे:
    पर्यावरण मंत्रालय को इन वनों के प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति बनानी चाहिए।
  4. कानूनी संरक्षण:
    इन वनों को अवैध भूमि उपयोग से बचाने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएं।

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