सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) दवाओं की उपलब्धता और इससे जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए सख्त निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एचआईवी/एड्स के मरीजों को समय पर आवश्यक दवाएं मिलनी चाहिए।
राज्यों को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश
कोर्ट ने सभी राज्यों से इस संबंध में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। राज्यों को एक महीने के भीतर अपना हलफनामा प्रस्तुत करना होगा, जिसमें यह बताना होगा कि वे एआरटी दवाओं की सुचारु आपूर्ति के लिए क्या कदम उठा रहे हैं।
यह निर्देश उस याचिका के तहत आया है, जो नेटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स (NPLHA) और अन्य संगठनों द्वारा दायर की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि कई राज्यों में एचआईवी/एड्स मरीजों को एआरटी दवाएं समय पर नहीं मिल पा रही हैं, जिससे उनकी सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है।
चार अप्रैल को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को एक चार्ट पेश करने की अनुमति दी है, जिसमें बताया जाएगा कि केंद्र और राज्य सरकारों ने अब तक क्या कार्रवाई की है। इस मामले की अगली सुनवाई चार अप्रैल 2025 को होगी।
पर्यावरण मंजूरी के बिना श्रीस्तीनगर टाउनशिप में नहीं होगा कोई निर्माण – एनजीटी
कोलकाता, 24 फरवरी 2025: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने बंगाल सृष्टि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड को सख्त चेतावनी देते हुए कहा है कि बिना पर्यावरणीय मंजूरी के श्रीस्तीनगर टाउनशिप प्रोजेक्ट में कोई निर्माण कार्य नहीं होगा।
बिना मंजूरी निर्माण अवैध
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि जब तक पर्यावरण संबंधी सभी अनुमतियां प्राप्त नहीं हो जातीं, तब तक कोई भी निर्माण कार्य नियमों का उल्लंघन माना जाएगा। यह मामला पश्चिम बर्दवान जिले से जुड़ा हुआ है, जहां यह टाउनशिप प्रोजेक्ट बन रहा है।
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर 12.75 लाख रुपये का जुर्माना
एनजीटी द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने परियोजना में पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की पुष्टि की है और इसके लिए कंपनी पर 12.75 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। पश्चिम बर्दवान के जिला मजिस्ट्रेट ने भी इस रिपोर्ट पर सहमति जताई है।
कंपनी ने मांगा अतिरिक्त समय
बंगाल सृष्टि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट लिमिटेड के वकील ने एनजीटी से अतिरिक्त समय की मांग की है, ताकि वे फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर जवाब दे सकें। उनका दावा है कि उन्होंने ‘उल्लंघन श्रेणी’ के तहत पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन किया था, क्योंकि निर्माण कार्य पहले ही शुरू कर दिया गया था।
पर्यावरण को खतरा – याचिकाकर्ता का आरोप
इस मामले में याचिकाकर्ता आशीष कुमार ने आरोप लगाया है कि नूनिया नदी में मलबा डाला जा रहा है और तीन प्रमुख निर्माण परियोजनाओं – तरंग, टाउन हाउस और संगति के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है।
89.67 एकड़ भूमि पर निर्माण
ये सभी निर्माण परियोजनाएं आसनसोल-दुर्गापुर विकास प्राधिकरण (ADDA) द्वारा आवंटित 89.67 एकड़ भूमि पर बनाई जा रही हैं। आरोप है कि इस टाउनशिप के पास राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) से कोई मंजूरी नहीं है।
नदियों के लिए बढ़ता खतरा
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि इस अवैध निर्माण के कारण गारुई नदी का बड़ा हिस्सा संकरा हो गया है और यह अब सिर्फ एक नाले जैसी दिख रही है। गारुई नदी, नूनिया नदी की सहायक नदी है और यह आगे दामोदर नदी में मिलती है।
औद्योगिक और निर्माण गतिविधियों के कारण इन नदियों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है, जिससे जल प्रदूषण और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
पर्यावरण सुरक्षा को लेकर सख्ती
एनजीटी ने स्पष्ट किया है कि जब तक सभी पर्यावरणीय स्वीकृतियां पूरी नहीं होतीं, तब तक इस परियोजना में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा।