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सुप्रीम कोर्ट: आरक्षित वन भूमि पर अवैध कब्जे की जांच के लिए विशेष टीमें गठित करने का आदेश

by kishanchaubey
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Forest News

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे आरक्षित वन भूमि पर अवैध आवंटनों की जांच के लिए विशेष जांच टीमें (एसआईटी) गठित करें। यह आदेश पुणे जिले के कोंढवा बुद्रुक में रिची रिच को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (आरआरसीएचएस) को अवैध रूप से वन भूमि आवंटित करने से जुड़े मामले में आया।

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति कृष्णन विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि राजस्व विभाग के पास मौजूद आरक्षित वन भूमि का गैर-वन कार्यों के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को आवंटन अवैध है। कोर्ट ने आदेश दिया कि ऐसी जमीन को तत्काल वन विभाग को वापस किया जाए। यदि जनहित में जमीन वापस लेना संभव न हो, तो उसकी पूरी लागत वसूल कर वन विकास के लिए उपयोग की जाए।

कोर्ट ने सख्ती से कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अब से आरक्षित वन LAND का उपयोग केवल वन विकास के लिए ही होगा।” इस प्रक्रिया को एक साल के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया गया है।

पुणे का मामला: अवैध आवंटन और पर्यावरण मंजूरी रद्द

यह मामला पुणे के कोंढवा बुद्रुक में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि के 28 अगस्त 1998 को कृषि उद्देश्यों के लिए आवंटन और 30 अक्टूबर 1999 को आरआरसीएचएस को बिक्री की अनुमति से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे पूरी तरह अवैध करार दिया। साथ ही, 3 जुलाई 2007 को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरण मंजूरी को भी रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि राजस्व विभाग के पास मौजूद यह जमीन तीन महीने के भीतर वन विभाग को हस्तांतरित की जाए।

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जंगल में मकान जायज? कोर्ट का सवाल

29 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या जंगल में मकान बनाना कानूनी है। कोर्ट ने कहा कि यदि यह संभव है, तो इसके लिए नियम, कानून और आदेशों को हलफनामे के साथ पेश किया जाए। दोनों सरकारों को तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

पर्यावरण और वनवासियों के अधिकारों पर जोर

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जंगलों में अवैध निर्माण और गैर-वन गतिविधियों पर सख्ती बढ़ने की उम्मीद है। यह कदम पर्यावरण संरक्षण और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरक्षित वन भूमि का दुरुपयोग अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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