Ganga River: सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी के किनारों पर बढ़ते अतिक्रमण को लेकर गहरी चिंता जताई है और केंद्र सरकार, बिहार सरकार सहित अन्य संबंधित प्राधिकरणों को चार सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने 2 अप्रैल, 2025 को यह आदेश जारी करते हुए अतिक्रमण की वर्तमान स्थिति पर स्पष्ट, विस्तृत और समयबद्ध जानकारी मांगी है।
यह आदेश पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दायर एक अपील की सुनवाई के दौरान आया। कोर्ट ने कहा, “न्यायालय मामले की वर्तमान स्थिति की पूरी जानकारी चाहता है।” कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल किया कि अब तक कितने अतिक्रमण हटाए गए हैं, कितने शेष हैं, उन्हें हटाने की कार्य योजना क्या है और यह कार्रवाई कब तक पूरी होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अंतिम निर्देश जारी करने से पहले इन सभी बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट देखना चाहता है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 18 सितंबर, 2023 को पेश की गई एक सर्वेक्षण रिपोर्ट का भी जिक्र किया। इस रिपोर्ट में बताया गया कि पटना के महात्मा गांधी सेतु से नौजर घाट तक फैले संबलपुर दियारा क्षेत्र में 151 अवैध निर्माण हैं, जिनमें अस्थायी और स्थायी दोनों तरह की संरचनाएं शामिल हैं। यह सर्वेक्षण जिला अधिकारी के निर्देश पर गठित टीम द्वारा 1908-09 के सर्वेक्षण मानचित्र और 1932-33 की नगरपालिका सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर किया गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बिहार पब्लिक लैंड अतिक्रमण अधिनियम, 1956 के तहत इन निर्माणों को हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और अब तक 15 अतिक्रमण वाद दर्ज किए गए हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस पर और स्पष्टता की मांग की।
अपीलकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कोर्ट को बताया कि बिहार में गंगा का बाढ़ क्षेत्र, जो मीठे पानी की डॉल्फिन का समृद्ध आवास है, वहां बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण हो रहा है। उन्होंने कहा, “इन संरचनाओं से न केवल गंगा नदी और उसमें रहने वाली डॉल्फिन को गंभीर खतरा है, बल्कि गंगा जल की शुद्धता और पवित्रता भी प्रभावित हो रही है। पटना का भूजल आर्सेनिक से प्रदूषित है, ऐसे में गंगा जल की शुद्धता पीने के पानी की जरूरतों के लिए अनिवार्य है।”
वशिष्ठ ने यह भी दलील दी कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के बाढ़ क्षेत्रों की सीमांकन प्रक्रिया गंगा प्राधिकरण आदेश, 2016 के केंद्रीय कानूनी प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि गंगा बेसिन के अधिकांश राज्य इन क्षेत्रों की सीमांकन में मनमाना और अवैज्ञानिक रवैया अपना रहे हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान होने की आशंका बढ़ रही है।
यह मामला मूल रूप से राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 2020 के एक आदेश से शुरू हुआ था, जिसमें अशोक सिन्हा की याचिका पर अतिक्रमण की समस्या का कोई ठोस समाधान नहीं दिया गया था। याचिका में कहा गया था कि पटना में गंगा के बाढ़ क्षेत्रों में बिहार सरकार द्वारा 1.5 किलोमीटर लंबी सड़क, कॉलोनियां, ईंट भट्टे और अन्य निर्माण कार्य किए गए हैं, जबकि यह क्षेत्र पूरे उपमहाद्वीप में डॉल्फिन का प्रमुख प्राकृतिक आवास है। याचिका में यह भी उल्लेख था कि पटना के गंगा से सटे क्षेत्रों का भूजल अत्यधिक आर्सेनिक युक्त है, जिससे लगभग 5.5 लाख लोग जोखिम में हैं। इसलिए गंगा की पारिस्थितिकीय अखंडता और जल की शुद्धता बनाए रखना बेहद जरूरी है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह इस मामले का दायरा बढ़ाकर गंगा बेसिन के सभी 11 राज्यों के बाढ़ क्षेत्रों को शामिल कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो यह निर्णय गंगा क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।
कोर्ट ने अपीलकर्ता अशोक कुमार सिन्हा को भी अतिक्रमण की मौजूदा स्थिति से अवगत कराने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर होगी।