पराली जलाने का सीजन आमतौर पर नवंबर के अंत तक खत्म हो जाता है और इस अवधि में सैटेलाइट द्वारा निगरानी भी 15 सितंबर से 30 नवंबर तक की जाती है। लेकिन 2024 में पराली जलाने के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है। 22 से 24 नवंबर के बीच, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण में पराली का योगदान 11% से 26% तक दर्ज किया गया। विशेषज्ञ अब यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस बार निगरानी की अवधि 30 नवंबर के बाद भी बढ़ाई जाएगी?
25 नवंबर को 1026 घटनाएं दर्ज
कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (CREAMS) की रिपोर्ट के अनुसार, 25 नवंबर 2024 को पराली जलाने के 1026 मामले दर्ज हुए। इनमें सबसे ज्यादा 526 मामले मध्य प्रदेश से, 379 यूपी से, 67 पंजाब से, 31 राजस्थान से और 26 हरियाणा से आए हैं।
छह सालों में सबसे ज्यादा मामले
2024 में 25 नवंबर तक पराली जलाने के मामले बीते छह सालों में सबसे ज्यादा हैं। तुलनात्मक आंकड़े इस प्रकार हैं:
➤ 2024 – 1029
➤ 2023 – 359
➤ 2022 – 635
➤ 2021 – 525
➤ 2020 – 114
➤ 2019 – 315
➤ 2018 – 425
पंजाब-हरियाणा में कमी, यूपी और मध्य प्रदेश में उछाल
अधिकारियों के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। यह फसल अवशेष प्रबंधन और जागरूकता अभियानों की सफलता को दर्शाता है। लेकिन यूपी और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अब भी मामलों की संख्या चिंताजनक बनी हुई है।
मौसम पर असर
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दिल्ली-एनसीआर का मौसम भी प्रभावित हो रहा है। पराली के धुएं और ठंड के मेल से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) और भी खराब हो रहा है।
आगे क्या?
अब यह देखना होगा कि 30 नवंबर के बाद भी पराली की निगरानी जारी रहती है या नहीं। इस बार की स्थिति को देखते हुए विशेषज्ञ निगरानी को दिसंबर तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। वहीं, राज्यों को भी इस समस्या से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।