मध्य प्रदेश में गेहूं की पराली (नरवाई) जलाने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए प्रशासन ने सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है। इंदौर कलेक्टर कार्यालय ने सोशल मीडिया पर बताया कि केवल 16 अप्रैल 2025 को 102 किसानों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए और 3 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया गया।
अब तक इंदौर में 770 किसानों पर कार्रवाई हो चुकी है, जिनसे कुल 16.71 लाख रुपये का जुर्माना वसूला गया है। प्रशासन ने चेतावनी दी है कि यह कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।
पराली जलाने की स्थिति
नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के सीआरईएएमएस डैशबोर्ड के अनुसार, मध्य प्रदेश में इस साल 14,118 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुई हैं।
इंदौर में 1,240 घटनाएं रिकॉर्ड की गईं, जिसके कारण यह विदिशा, होशंगाबाद (नर्मदापुरम), उज्जैन, और उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के बाद पांचवें स्थान पर है। इन घटनाओं का मुख्य कारण ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती का बढ़ता चलन बताया जा रहा है, क्योंकि किसान खेत को जल्दी तैयार करने के लिए पराली जलाते हैं।
जुर्माने का नियम
इंदौर प्रशासन ने पराली जलाने पर जुर्माने का स्पष्ट नियम बनाया है:
- 2 एकड़ तक जमीन: प्रति घटना 2,500 रुपये।
- 2-5 एकड़ जमीन: प्रति घटना 5,000 रुपये।
- 5 एकड़ से अधिक जमीन: प्रति घटना 15,000 रुपये।
यह जुर्माना पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए लगाया जा रहा है।
किसानों का पक्ष
क्रांतिकारी किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष लीलाधर राजपूत ने प्रशासन की कार्रवाई को गलत बताया। उनका कहना है कि आग की घटनाएं गर्मी, बिजली गिरने, या बिजली के तारों से भी होती हैं। सभी घटनाओं का दोष किसानों पर डालना ठीक नहीं है।
लीलाधर के अनुसार, किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। गेहूं और धान से उन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिलता, इसलिए वे नुकसान की भरपाई के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करते हैं। खेत को जल्दी तैयार करने के लिए मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है।
वे पराली जलाने का समर्थन नहीं करते, लेकिन कहते हैं कि सरकार ने किसानों को कोई विकल्प नहीं दिया। पराली प्रबंधन या इसके वैकल्पिक उपयोग के लिए न तो मशीनें उपलब्ध हैं और न ही कोई सरकारी मदद मिल रही है।
मूंग की खेती और पराली की समस्या
मध्य प्रदेश के उन जिलों में पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा हैं, जहां मूंग की खेती बढ़ रही है। इनमें होशंगाबाद, रायसेन, देवास, विदिशा, हरदा, और सीहोर प्रमुख हैं। होशंगाबाद में नहरों से मई तक पानी मिलने के कारण मूंग की खेती पिछले 10 सालों में तेजी से बढ़ी है।
यहां लगभग सभी किसान तीसरी फसल के रूप में मूंग बोते हैं। होशंगाबाद पिछले चार सालों में दो बार (2022-2023) पराली जलाने के मामलों में पहले स्थान पर रहा।
पराली जलाने के नुकसान
पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जिससे सांस की बीमारियां, धुंध, और पर्यावरणीय नुकसान होता है। यह मिट्टी की उर्वरता को भी कम करता है और जैव विविधता को प्रभावित करता है। छोटे शहरों में बढ़ता प्रदूषण, जैसे बागपत (AQI 297), इस समस्या को और गंभीर बनाता है।
समाधान के उपाय
- वैकल्पिक प्रबंधन: सरकार को पराली के लिए बायोगैस संयंत्र या कम्पोस्ट बनाने की सुविधाएं देनी चाहिए।
- मशीनों की उपलब्धता: पराली काटने वाली मशीनें (जैसे हैप्पी सीडर) सस्ते दामों पर उपलब्ध कराएं।
- जागरूकता: किसानों को पराली जलाने के नुकसान और विकल्पों के बारे में शिक्षित करना।
- आर्थिक मदद: मूंग की खेती के लिए समय और संसाधन देने हेतु सब्सिडी।