मध्य प्रदेश के झाबुआ-अलीराजपुर के पारा और कट्ठीवाड़ा के जंगलों में काले रंग के मुर्गे की प्रजाति पाई जाती है, जिसे कड़कनाथ के नाम से जाना जाता है। इस मुर्गे का रंग काला होता है, इनका हर अंग यहां तक कि खून भी काला होता है। पोषण में भी आम मुर्गों की तुलना में इसमें प्रोटीन और आयरन की अधिक मात्रा मिलती है। स्वाद और पोषण से भरपूर कड़कनाथ के काले मांस को जीआई टैग भी मिला हुआ है। अधिक गर्मी सह सकने की वजह से इस नस्ल को जलवायु अनुकूल माना जाता है और अधिक गर्म या ठंडे स्थानों के साथ इसे अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर भी पाला जा सकता है।
बाजार में इस मुर्गे की अच्छी कीमत मिलने की वजह से देश के 13 राज्यों में कड़कनाथ पालन हो रहा है। झाबुआ के आदिवासी इलाकों में किसानों को रोजगार का अच्छा माध्यम मिला है। चेन्नई स्थित GI पंजीकरण कार्यालय ने मध्य प्रदेश राज्य को मुर्गे की एक प्रजाति कड़कनाथ के लिये भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दे दिया है। मध्य प्रदेश के ग्रामीण विकास ट्रस्ट, झाबुआ ने इसके लिये वर्ष 2012 में आवेदन किया था।
जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूल है कड़कनाथ
कड़कनाथ देसी प्रजाति का होने की वजह से यहां की आबोहवा के अनुकूल है। झाबुआ का मौसम गर्म है लेकिन भीषण गर्मी में भी कड़कनाथ आसानी से पाला जा सकता है। झाबुआ में औसतन 855.5 मिलीमीटर बारिश होती है और गर्मी में दिन का तापमान 40 डिग्री के पार चला जाता है। मध्य प्रदेश सरकार की संस्था एप्को द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि झाबुआ मध्य प्रदेश के उन जिलों में शामिल है जहां जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव होंगे। ऐसे में कड़कनाथ पालन रोजगार का एक उपाय हो सकता है।
कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ के साथ कड़कनाथ मुर्गे पर लंबे वक्त तक शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते है, “कड़कनाथ प्रजाति जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेल सकती है। कड़कनाथ एक देसी प्रजाति है और यहां के मौसम के प्रति अनुकूल है। कोई भी देसी पक्षी बढ़ रही गर्मी के प्रति अनुकूलन कर सकता है।”
कड़कनाथ प्रजाति के गर्मी सहने को लेकर दिवाकर कहते हैं कि इसकी ग्रोथ रेट ब्रॉयलर की तुलना में कम है इसलिए यह 35 डिग्री सेल्सियस तापमान के बाद भी बची रहती हैं। जबकि ब्रॉयलर चिकन को बचाने के लिए ठंडक के इंतजाम करने पड़ते हैं। हालांकि, वह मानते हैं कि झाबुआ का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को छूने लगा है जिसकी वजह से अब कड़कनाथ को भी गर्मी से बचाने के इंतजाम करने होंगे।
कड़कनाथ की इस खूबी को देखते हुए केवीके झाबुआ ने कई गांवों में किसानों को जलवायु जोखिम से निपटने के लिए कड़कनाथ के चूजे दिए। जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के तहत हमने चार गांव में किसानों को रोजगार के नए साधन दिए। कड़कनाथ, झाबुआ की जलवायु के अनुकूल है। यहां की गर्मी को सहने वाली है, इसमें चूजे की मृत्यु दर कम होती है, और अच्छी कीमत में बिकती है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ती है