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रातापानी टाइगर रिजर्व घोषित करने में 16 साल की देरी: रसूखदारों के स्टोन क्रशर बने सबसे बड़ी बाधा

by kishanchaubey
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ratapani tiger reserve

रातापानी अभयारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने की प्रक्रिया पिछले 16 साल से अटकी पड़ी है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) इसे प्रदेश का सातवां टाइगर रिजर्व घोषित करने की मंजूरी दे चुकी है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक यह परियोजना अधर में है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कई बार अधिकारियों को इस देरी पर फटकार लगाई, लेकिन प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका है।

हाईवे के दोनों ओर स्टोन क्रशर
नेशनल हाईवे-45 के दोनों ओर बफर जोन में करीब 60 से अधिक स्टोन क्रशर पाए गए। इन क्रशरों में से कई रसूखदार लोगों के हैं, जो गिट्टी निकालने के लिए जंगल में सड़कों का निर्माण कर चुके हैं। इन स्टोन क्रशरों को अक्सर नियमों की अनदेखी कर खनन की मंजूरी दी गई है। रातापानी को टाइगर रिजर्व बनाए जाने के बाद इन क्रशरों को बंद करना अनिवार्य होगा, इसी कारण इस परियोजना को लटकाए रखा गया है।

फटकार भी बेअसर
एनटीसीए द्वारा मंजूरी मिलने और मुख्यमंत्री के अधिकारियों पर फटकार लगाने के बावजूद टाइगर रिजर्व बनने की प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि जैसे ही रातापानी टाइगर रिजर्व बनेगा, खनन गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी, जिससे यहां के रसूखदारों के हितों को नुकसान पहुंचेगा।

पेड़ों को जलाकर काटते हैं माफिया
जंगल की भूमि पर कब्जा करने और सागौन के पेड़ों की कटाई के लिए खनन माफिया कंडे और कोयले के अंगारों का उपयोग कर रहे हैं। पेड़ों की जड़ों में अंगार रखकर उन्हें जलाया जाता है, जिससे पेड़ गिराना आसान हो जाता है। इसके बाद चंद मिनटों में पेड़ों की कटाई कर बेशकीमती लकड़ी उठा ली जाती है। कोलार डेम के जंगल में भी यह कटाई लगातार जारी है, जिससे वन संपदा को बड़ा नुकसान हो रहा है।

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ईको-सेंसिटिव जोन में खुलेआम खनन
प्रस्तावित टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1244.518 वर्ग किमी है, जिसमें 480.706 वर्ग किमी बफर और 763.812 वर्ग किमी कोर एरिया शामिल है। कोर और बफर क्षेत्र के आसपास का इलाका ईको-सेंसिटिव जोन माना जाता है, जिसमें खनन गतिविधियों पर सख्त पाबंदी होनी चाहिए। नियमों के अनुसार, ईको-सेंसिटिव जोन के एक किमी दायरे में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि नहीं होनी चाहिए।

इसके बावजूद, यहां नियमों की अनदेखी करते हुए खुलेआम खनन जारी है। खदान के 500 मीटर के दायरे में ऐतिहासिक धरोहर, जल निकाय, नहर या नदी नहीं होना चाहिए, लेकिन यहां इन सभी नियमों को ताक पर रखा जा रहा है।

राजस्व भूमि पर भी खनन
रातापानी में राजस्व भूमि पर भी स्टोन क्रशर चल रहे हैं। इन पर आपत्तियां दर्ज की गई हैं, जिसके बाद कुछ क्रशर बंद भी हुए हैं। विभाग द्वारा क्रशर बंद करने के लिए पत्र तो लिखे गए हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई होती नहीं दिख रही है। वन विभाग के अधिकारी भी इस बारे में पूरी जानकारी देने में असमर्थता जताते हैं और फाइलें देखने का हवाला देते हैं।

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