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वैश्विक जल संकट से गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य खतरे: गरीब देशों की जीडीपी में 2050 तक 15% गिरावट की आशंका

by reporter
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दुनिया भर में जल संकट तेजी से गंभीर होता जा रहा है और इसके परिणामस्वरूप गरीब देशों में 2050 तक जीडीपी में 15% तक की गिरावट का खतरा है। ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वॉटर द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, यह संकट पर्यावरणीय असंतुलन, कमजोर आर्थिक नीतियों, अस्थिर भूमि उपयोग और जल संसाधनों के गलत प्रबंधन के कारण उत्पन्न हुआ है, जिसे जलवायु परिवर्तन और बढ़ा रहा है।

पर्यावरण पर असर
जल संकट से न केवल जल संसाधनों की कमी हो रही है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पानी की कमी के कारण:

  • ग्रीन वॉटर (मिट्टी और पौधों में नमी) की मात्रा कम हो रही है, जिससे बारिश का चक्र प्रभावित होता है। बारिश की कमी से जंगलों और फसलों पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
  • ब्लू वॉटर (सतही और भूजल) के घटने से नदियों, झीलों, और जल स्रोतों का सूखना जारी है, जिससे जैव विविधता को खतरा है। मछलियों, जलीय पौधों, और अन्य जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में है।
  • कार्बन अवशोषण की क्षमता घटती है, क्योंकि ग्रीन वॉटर की कमी से मिट्टी और वनस्पतियाँ कार्बन डाइऑक्साइड को कम मात्रा में अवशोषित कर पा रही हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो रही है।

स्वास्थ्य पर असर
जल संकट का स्वास्थ्य पर व्यापक असर हो रहा है, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में:

  • पानी की कमी से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, हर व्यक्ति को स्वस्थ जीवन के लिए प्रतिदिन कम से कम 50-100 लीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि गरिमापूर्ण जीवन के लिए 4000 लीटर प्रतिदिन आवश्यक है। इसकी कमी से साफ पानी न मिलने पर संक्रामक रोगों जैसे हैजा, टायफाइड और दस्त के मामले बढ़ रहे हैं।
  • कुपोषण का खतरा बढ़ता है, क्योंकि पानी की कमी से कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है, जिससे खाद्य आपूर्ति अस्थिर हो जाती है। इससे बच्चों और बुजुर्गों में पोषण की कमी के कारण कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो रही है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर असर — जल संकट की वजह से कई लोगों में तनाव और चिंता का स्तर बढ़ रहा है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ जल स्रोतों तक पहुंच कठिन हो गई है।

संकट का समाधान: एक नई दृष्टिकोण की जरूरत
ग्लोबल कमीशन ने जल संकट से निपटने के लिए एक पांच-बिंदु योजना प्रस्तुत की है, जिसमें खाद्य प्रणाली में बदलाव, सर्कुलर जल अर्थव्यवस्था का निर्माण, और स्वच्छ पानी की सभी तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है। यह योजना जल प्रबंधन में मौलिक बदलाव लाने की आवश्यकता को दर्शाती है, जहाँ पानी को ‘वैश्विक सार्वजनिक संपत्ति’ के रूप में देखा जाएगा और सभी देश एक साथ मिलकर जल संरक्षण के प्रयास करेंगे।

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वैश्विक जल संधि
रिपोर्ट में ग्लोबल वॉटर पैक्ट स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है, जिसके तहत ‘जस्ट वॉटर पार्टनरशिप’ जैसे अभिनव फंडिंग साधनों का उपयोग कर जल संकट का हल ढूंढा जा सके। इसके लिए वैश्विक डेटा ढांचे को मजबूत बनाना भी आवश्यक है ताकि पानी के संरक्षण और पुनः प्राप्ति के लिए अधिक वैज्ञानिक और सहयोगी दृष्टिकोण अपनाया जा सके।

जल संकट एक गंभीर चुनौती तो है ही, साथ ही यह वैश्विक स्तर पर जल प्रबंधन और नीति में नए बदलाव लाने का अवसर भी है, जो न केवल पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करेगा बल्कि सभी के स्वास्थ्य और कल्याण को भी सुरक्षित बनाएगा।

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