नई दिल्ली, 06 जून 2025: दुनियाभर की झीलों के सतह क्षेत्र में होने वाले बदलाव का सबसे बड़ा कारण मौसमी उतार-चढ़ाव हैं। यह खुलासा बांगोर यूनिवर्सिटी, यूके और चीन के सिंघुआ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए वैश्विक अध्ययन में हुआ है। इस अध्ययन के नतीजे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं ने 2001 से 2023 तक 14 लाख झीलों का सैटेलाइट डेटा के जरिए हर महीने विश्लेषण किया। इस दौरान डीप लर्निंग और हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग कर झीलों के मौसमी सिकुड़ने और फैलने के पैटर्न को समझा गया। अध्ययन से पता चला कि दुनिया की लगभग 66% झीलें (क्षेत्रफल के हिसाब से) और 60% झीलें (संख्या के हिसाब से) मौसम के अनुसार अपने आकार में बदलाव करती हैं। ये बदलाव गर्मी, सर्दी, बारिश और सूखे जैसे मौसमी प्रभावों से प्रेरित होते हैं।
चरम मौसमी घटनाओं का गहरा प्रभाव
अध्ययन में यह भी सामने आया कि चरम मौसमी घटनाएं, जैसे भारी बारिश या लंबे समय तक सूखा, झीलों के आकार पर सामान्य मौसमी बदलावों या लंबे समय के रुझानों से कहीं अधिक प्रभाव डालती हैं। ऐसी परिस्थितियों में 42% झीलें, जो पहले से सिकुड़ रही थीं, और तेजी से सिकुड़ जाती हैं, जबकि 45% झीलों का विस्तार पूरी तरह रुक जाता है।
शोधकर्ता डॉ. इस्टिन वूलवे ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया, “कुछ झीलों में लंबे समय के बदलाव मौसमी बदलावों से अधिक दिखते हैं, लेकिन चरम मौसमी बदलावों का प्रभाव इन सबसे ज्यादा गहरा होता है। ये बदलाव ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन पर व्यापक असर डालते हैं।”
झीलों के सिकुड़ने से पर्यावरण और मानव जीवन पर खतरा
झीलों के तेजी से सिकुड़ने से तलछट बाहर आ सकती है, जिससे मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में रिलीज हो सकती हैं। यह स्थानीय जलवायु को प्रभावित करता है और झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर सकता है। इससे खाद्य श्रृंखला बाधित होती है, शैवालों का वितरण बदलता है, और जलीय जीवों पर असर पड़ता है। कुछ मामलों में ये बदलाव इतने गंभीर हो सकते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र को पहले जैसा करना लगभग असंभव हो जाता है।
दुनिया की 90% आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां झीलों का व्यवहार मौसम पर निर्भर करता है। इसलिए, इन बदलावों को समझना और उनका प्रबंधन करना बेहद जरूरी है।
बेहतर निगरानी और नीतियों की जरूरत
शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि मौसमी बदलावों की बेहतर निगरानी और समझ से झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, ताजे पानी के संसाधनों का प्रबंधन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के अनुमान में सुधार किया जा सकता है। इसके लिए झीलों की नियमित निगरानी, संरक्षण और जलवायु नीतियों को मजबूत करना आवश्यक है।
यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन और मौसमी प्रभावों के बीच जटिल संबंधों को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में जल संसाधनों के प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लिए नीतियां बनाने में मदद करेगा।