वैज्ञानिकों ने पौधों की जड़ों से निकलने वाले एक छोटे अणु, क्ले16 पेप्टाइड, की पहचान की है, जो पौधों और अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवकों के बीच सहजीवी संबंध को मजबूत करता है। यह खोज खेती को रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम करने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
शोध की मुख्य बातें:
प्रोसीडिंग्स ऑफ दि नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध के अनुसार, क्ले16 पेप्टाइड पौधों और कवकों के बीच पोषक तत्वों के आदान-प्रदान को बढ़ाता है।
मेडिकागो ट्रंकैटुला पौधे और कवकों पर किए गए प्रयोगों में पाया गया कि क्ले16 की मौजूदगी से कवक लंबे समय तक सक्रिय रहते हैं और पौधों को अधिक फास्फोरस और पानी प्रदान करते हैं। बदले में, पौधे कवकों को कार्बन देते हैं। यह स्व-प्रवर्धित चक्र खेती के लिए अत्यंत फायदेमंद है।
सहजीवन कैसे काम करता है:
अर्बुस्कुलर माइकोराइजल कवक पौधों की जड़ों से जुड़कर आर्बस्क्यूल्स नामक ढांचे बनाते हैं, जो पोषक तत्वों और पानी के आदान-प्रदान में मदद करते हैं। लगभग 80% पौधों की प्रजातियां इस सहजीवन से लाभान्वित होती हैं।
क्ले16 पेप्टाइड पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली को संतुलित करता है, जिससे वे कवकों को स्वीकार करते हैं। कुछ कवक भी क्ले16 जैसे अणु बनाकर इस संबंध को और मजबूत करते हैं।
खेती के लिए फायदे:
रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी: क्ले16 और कवक-आधारित तकनीक से पौधों को प्राकृतिक रूप से पोषक तत्व मिलेंगे।
फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ेगी: कवक पौधों को बेहतर पोषण और प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
मिट्टी की सेहत में सुधार: यह तकनीक मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखेगी।
कीटनाशकों का उपयोग घटेगा: कवक प्राकृतिक रूप से पौधों की रक्षा करते हैं।
प्रमुख फसलों को लाभ: सोया, गेहूं और मक्का जैसी फसलों की उत्पादकता बढ़ सकती है।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव:
आधुनिक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी, पानी और हवा प्रदूषित हो रहे हैं, साथ ही किसानों की लागत भी बढ़ रही है। क्ले16 पेप्टाइड की खोज इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करती है।
यह तकनीक मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और किसानों की लागत घटाने में मदद कर सकती है। भविष्य में क्ले16 या कवक-आधारित सप्लीमेंट्स प्राकृतिक उर्वरकों का विकल्प बन सकते हैं।