प्रदूषण से दुनिया की हर चीज को खतरा है. यहां तक कि पुराने के ऐतिहासिक स्थल और इमारतों पर वायु और जल प्रदूषण का खतरा से बचाने की लिए वैज्ञानिक भरसक प्रयास कर रहे हैं. लेकिन तब आप क्या कहेंगे जब आपको पता लगा कि वैज्ञानिकों को पुरातन स्थल की खुदाई के दौरान मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक मिला है जो आज की दुनिया का एक खतरनाक प्रदूषक है. यह दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी खतरे की घंटी माना जा रहा है.
जाहिर है महीन चीज का मिट्टी में होने का साफ मतलब है कि प्रदूषण से हमारी दुनिया की जमीन में दबी पुरातन विरासतें तक खतरे से खाली नहीं है. इससे हमे अपने पुरात्व खजानों के संरक्षण पर नए सिरे से काम करना होगा.
शोधकर्ताओं ने पहली से दूसरी ईस्वी के समय की मिट्टी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाया है. यह नमूनों 23 फुट यानी 7 मीटर से भी अधिक गहराई के परतों से निकाले गए थे. इस पड़ताल ने पुरातन स्थल में दबे, छिपे हुए निक्षेपों के सुरक्षित और मूल रूप में कायम रहने की धारणा को चुनौती दी है.
आज और पुराने समय की मिट्टी में एक नहीं बल्कि 16 अलग अलग तरह के माइक्रोप्लास्टिक पॉलिमर पाए हैं. माइक्रोप्लास्टिक 5 मीलीमीटर से भी कम आकार के हैं जो कि बड़े प्लास्टिक से टूट कर बने हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये टुकड़े करीब 2020 में सौंदर्य उत्पादों में उपयोग में लाए गए थे.
हाल के सालों में माइक्रोप्लास्टिक का बढ़ता खतरा वैज्ञानिकों को लिए दुनिया भर में एक चिंता का विषय बनता जा रहा है. यह कई बार साबित हो रहा है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्र के रास्ते, समुद्री जीवों फिर उनसे इंसानों के खून में पहुंच रहा है. लेकिन यह पहली बार यह पाया गया है कि किसी जमीन में दबे पुरातत्व स्थल की मिट्टी तक इनकी पहुंच बन गई है.
अध्ययन साफ तौर पर इशारा करता है कि इस तरह से माइक्रोप्लास्टिक का होना पुरातत्व विज्ञान में आमूलचूल बदलाव ला सकता है. माइक्रोप्लास्टिक से पुरातत्व स्थलों का दूषित होने इनके वैज्ञानिक महत्व को स्पष्ट रूप से कम कर देगी और अब संरक्षण के तौर तरीकों में बहुत बड़ा बदलाव करना होगा.