भारत में 2013 से 2023 के बीच कुल वन आवरण में 2.38% की वृद्धि हुई, लेकिन 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वन क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई। खासकर पूर्वोत्तर भारत में यह समस्या अधिक गंभीर बनी हुई है। असम और सिक्किम को छोड़कर अन्य सभी छह राज्यों में वन आवरण में कमी आई है।
वन क्षेत्र में गिरावट के आंकड़े
1950 से 1980 के बीच भारत ने लगभग 45 लाख हेक्टेयर जंगल खो दिए थे। 1987 में वन मूल्यांकन शुरू होने के बाद भी उत्तर-पूर्वी राज्यों में वनों की गिरावट जारी रही। नवीनतम स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (SOFR) के अनुसार:
- अरुणाचल प्रदेश में वन क्षेत्र 1,000 वर्ग किमी से अधिक घट गया।
- मिजोरम में 987.70 वर्ग किमी का नुकसान हुआ, जो 2013 के वन क्षेत्र का 5.2% है।
- नागालैंड ने 794 वर्ग किमी जंगल खोया, जो 2013 के कुल वन आवरण का 6.11% है।
पश्चिमी घाट में भी गिरावट
पश्चिमी घाट ने भी 58.22 वर्ग किमी वन क्षेत्र खो दिया। 45 जिलों में से 25 जिलों में यह गिरावट दर्ज की गई:
- तमिलनाडु के नीलगिरी जिले ने 123.44 वर्ग किमी वन आवरण खो दिया।
- केरल के इडुक्की जिले में 97.44 वर्ग किमी का नुकसान हुआ।
- महाराष्ट्र के पुणे जिले में 82.65 वर्ग किमी की गिरावट आई।
नीतियों और वन संरक्षण का प्रभाव
सरकार द्वारा वनीकरण और पारिस्थितिकी बहाली के लिए करोड़ों रुपये निवेश किए गए, लेकिन इसके बावजूद वन क्षेत्र में कमी जारी है।
- ग्रीन इंडिया मिशन (2014) के तहत 2019-24 के दौरान राज्यों को 624.71 करोड़ रुपये दिए गए।
- मध्य प्रदेश को इस मिशन के तहत 88.92 करोड़ रुपये मिले, लेकिन 2011-21 के बीच 5,353.22 वर्ग किमी जंगल घट गया।
- ओडिशा ने 74.91 करोड़ रुपये का उपयोग किया, फिर भी 1,600 वर्ग किमी जंगल नष्ट हो गया।
ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम पर सवाल
ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के तहत निजी एजेंसियों को वृक्षारोपण के लिए भूमि दी जाती है, लेकिन यह नीति कई सवालों के घेरे में है।
- खराब भूमि को वृक्षारोपण के लिए खोलने से निजी एजेंसियों को फायदा होता है, लेकिन प्राकृतिक जंगलों की गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ता है।
- वृक्षारोपण की सफलता को सिर्फ दो वर्षों में आंका जाता है, जो अव्यवहारिक है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना केवल व्यावसायिक एजेंसियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
वन गणना की पद्धति में खामियां
वर्तमान वन सर्वेक्षण प्राकृतिक और मानव-निर्मित वनों में अंतर नहीं कर पाता। वृक्षारोपण से प्राकृतिक वनों जैसी पारिस्थितिकीय सेवाएं, जैव विविधता और कार्बन अवशोषण के लाभ नहीं मिलते।