मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नंगला मुबारिक गांव में फरवरी माह में हमेशा की तरह गन्ने की ऊंची-ऊंची फसलें कटाई के लिए तैयार खड़ी थीं। यह गांव मुजफ्फरनगर जिले में स्थित है, जिसे गन्ने का कटोरा कहा जाता है और जहां देश की सबसे बड़ी गुड़ मंडी है। भारत में उत्पादित गुड़ का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा यहीं से आता है। लेकिन इस बार गांव की तस्वीर बदली हुई थी — कई किसानों ने गन्ने की जगह पॉपलर की नर्सरी लगा दी है।
क्या है लाल सड़न?
लाल सड़न (Red Rot) एक फंगस कोलेटोट्राइकम फाल्केटम के कारण होती है। यह गन्ने के डंठल के अंदर लाल रंग की सड़न पैदा करती है, जिससे खट्टी और मादक गंध निकलती है। यह बीमारी मुजफ्फरनगर के साथ-साथ बिजनौर, मुरादाबाद और आसपास के जिलों में तेजी से फैली है।
गन्ने की उपज और चीनी उत्पादन में गिरावट
लखनऊ स्थित गन्ना विकास निदेशालय के अनुसार, वर्ष 2022-23 में गन्ना उत्पादन 224.25 मिलियन टन था, जो 2023-24 में घटकर 215.81 मिलियन टन रह गया। इसी अवधि में चीनी उत्पादन में भी मामूली गिरावट दर्ज हुई। सत्यवीर सिंह कहते हैं, “हम सामान्यतः 6,000 क्विंटल गन्ना उगाते थे, लेकिन इस बार मुश्किल से 3,500 क्विंटल ही हुआ।”
अद्भुत किस्म सीओ 0238 पर संकट
लाल सड़न की सबसे बड़ी मार गन्ने की सबसे लोकप्रिय किस्म सीओ 0238 पर पड़ी है। यह किस्म 2013-14 में केवल 3% खेतों में थी, लेकिन 2020-21 तक यह 87% खेतों में पहुंच गई थी। यह किस्म अधिक उपज, बेहतर चीनी रिकवरी और रैटूनिंग क्षमता के कारण बेहद लोकप्रिय हुई। लेकिन अब यही किस्म लाल सड़न के निशाने पर है।
रोग का फैलाव और कारण
आईसीएआर-आईआईएसआर के अनुसार, लाल सड़न रोग 1901 से भारत में मौजूद है और यह मिट्टी, पानी, हवा और संक्रमित बीजों के माध्यम से फैलता है। वर्ष 2021 के एक शोध के अनुसार, यह रोग पहले ही 40 से अधिक जिलों में 20,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैल चुका था। सीओ 0238 में पाए गए रोगजनक सीएफ 13 ने इसकी प्रतिरोधक क्षमता को भी तोड़ दिया है।
जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक बारिश ने भी इस रोग को फैलाने में भूमिका निभाई है। मुंजाल के विश्लेषण के अनुसार, 2020-23 के बीच बारिश में असमानता और बाढ़ के कारण लाल सड़न का प्रसार और तेज हो गया।
समाधान की तलाश
वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ किसानों को गन्ने की विविध किस्मों को अपनाने की सलाह दे रहे हैं। सरकार ने सीओ 0238 के स्थान पर सीओएस 13235, सीओ 0118, सीओएलके 15466 जैसी वैकल्पिक किस्में सुझाई हैं। हालांकि किसान इन नई किस्मों में उतनी उपज और रैटूनिंग क्षमता नहीं पा रहे हैं।
बीज की कमी भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। 400 रुपये प्रति क्विंटल की सरकारी दर की तुलना में किसान अब 600-1200 रुपये प्रति क्विंटल में बीज खरीदने को मजबूर हैं।