मानसून का खेल: बारिश ने बिगाड़ा फसलों का गणित, जलवायु परिवर्तन बना चुनौतीनई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ताजा मासिक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मौसम की अनियमितता, जैसे बहुत ज्यादा या बहुत कम बारिश, किसानों के लिए मुसीबत बन रही है। इससे फसलों को भारी नुकसान हो रहा है, उत्पादन कम हो रहा है और फसलों की क्वालिटी भी घट रही है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत की खेती आज भी मानसून पर टिकी है, और जलवायु परिवर्तन इसकी सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
बारिश का फसलों पर असर
RBI की रिपोर्ट में खरीफ फसलों पर बारिश के प्रभाव को आसान शब्दों में समझाया गया है। हर फसल का अपना समय होता है, और अगर उस समय बारिश कम या ज्यादा हो जाए, तो नुकसान तय है। मिसाल के तौर पर:
- जून-जुलाई में कम बारिश: चावल, मक्का और दालों की पैदावार घट जाती है, क्योंकि मिट्टी में नमी कम रहती है।
- अगस्त-सितंबर में ज्यादा बारिश: तिलहन जैसे सोयाबीन और मूंगफली को कटाई के वक्त नुकसान होता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि अलग-अलग जिलों में बारिश का पैटर्न अलग होता है, और यही फसलों की किस्मत तय करता है।
मानसून पर क्यों टिकी है खेती?
सिंचाई की तमाम योजनाओं और नए बीजों के बावजूद भारत में खेती मानसून की मोहताज है। दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) खरीफ फसलों के लिए जान है। अगर बारिश अच्छी हुई, तो चावल, दाल, तिलहन और मोटे अनाज की पैदावार बढ़ती है। लेकिन सूखा या बाढ़ जैसी स्थिति फसलों को चौपट कर देती है। कीड़े-मकोड़े और बीमारियां भी ऐसे मौसम में फसलों को घेर लेती हैं।
अच्छी बारिश का फायदा
जब मानसून समय पर और सही मात्रा में बरसता है, तो खेती चमक उठती है। मिट्टी में नमी रहती है और जलाशय भर जाते हैं। इससे रबी की फसलों जैसे गेहूं, सरसों और चने की बुआई आसान हो जाती है। पिछले साल (2024) की अच्छी बारिश और सर्दी के चलते इस साल खरीफ में 7.9% और रबी में 6% उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है।
जलवायु परिवर्तन का खतरा
लेकिन खुशी की बात लंबी नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पैटर्न बिगड़ रहा है। 2024 में 365 में से 322 दिन मौसम ने कुछ न कुछ अजीब किया—कहीं सूखा, कहीं बाढ़। 2023 में भी 318 दिन ऐसे थे। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर मौसम से निपटने की सही नीतियां नहीं बनीं, तो हालात और खराब होंगे। बाढ़ बढ़ने से फसलें डूब रही हैं, मिट्टी के पोषक तत्व बह रहे हैं, और खाने की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।
क्या है समाधान?
रिपोर्ट कहती है कि अब जलवायु के हिसाब से खेती करनी होगी। मिसाल के तौर पर:
- सूखा सहने वाले बीजों का इस्तेमाल।
- सही समय पर बुआई और कटाई।
- बारिश के पानी को सहेजने की तकनीक।