सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2024 को एक ऐतिहासिक आदेश पारित किया, जिससे भारत के पवित्र उपवनों (Sacred Groves) की पहचान, संरक्षण और प्रबंधन में बड़ा बदलाव आ सकता है। पवित्र उपवन वे स्थान होते हैं जहां स्थानीय समुदाय देवताओं, प्रकृति और पूर्वजों की आत्माओं की पूजा करते हैं और इन क्षेत्रों में वनस्पतियां प्राकृतिक रूप से संरक्षित रहती हैं।
राजस्थान में पवित्र उपवनों की पहचान और अधिसूचना का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के वन विभाग को निर्देश दिया है कि राज्य के सभी पवित्र उपवनों की पहचान कर उन्हें विस्तृत जमीनी और उपग्रह मानचित्रण के जरिए अधिसूचित किया जाए। इसके अलावा, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को देशभर में पवित्र उपवनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति तैयार करने को कहा गया है।
पवित्र उपवनों के लिए राष्ट्रीय सर्वेक्षण की योजना
फैसले में कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय को एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण की योजना बनानी चाहिए, जिससे पूरे देश में पवित्र उपवनों की पहचान, क्षेत्र, स्थान और सीमाओं को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जा सके।
वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत पारंपरिक समुदायों को अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act, 2006) के प्रावधानों का हवाला देते हुए राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि वे ऐसे पारंपरिक समुदायों की पहचान करें, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से पवित्र उपवनों की रक्षा की है।
- इन क्षेत्रों को सामुदायिक वन संसाधन (Community Forest Resource – CFR) के रूप में नामित किया जाए।
- वन अधिकार अधिनियम की धारा 5 के तहत, इन समुदायों को वन्यजीवों, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा जारी रखने के लिए सशक्त बनाया जाए।
स्थानीय समुदायों की भूमिका को मान्यता देने की सिफारिश
अदालत ने यह भी कहा कि स्थानीय समुदायों की संरक्षकता की भूमिका को औपचारिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए और उन्हें बाहरी लोगों की पहुंच को नियंत्रित करने और हानिकारक गतिविधियों को रोकने का अधिकार दिया जाना चाहिए, ताकि उनकी विरासत सुरक्षित रह सके।
पांच सदस्यीय समिति का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान को पांच सदस्यीय समिति बनाने का निर्देश दिया है, जिसमें –
- डोमेन विशेषज्ञ
- सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक
- पर्यावरण मंत्रालय का वरिष्ठ अधिकारी
- राजस्थान सरकार के वन विभाग का वरिष्ठ अधिकारी
- राजस्व विभाग का वरिष्ठ अधिकारी
समिति की शर्तों और नियमों को भारत सरकार और राजस्थान सरकार संयुक्त रूप से तय करेंगे।
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अलवर स्थित गैर-लाभकारी संस्था कृषि एवं पर्यावरणीय विकास संस्थान (Krishi Evam Paryavaran Vikas Sansthan – KRAPAVIS) के मुख्य समन्वयक अमन सिंह की याचिका पर आया।
याचिका का कारण
- यह याचिका 13 फरवरी 2024 को दायर की गई थी, क्योंकि राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2018 के आदेश को लागू करने में देरी कर दी थी।
- 2018 के आदेश में राजस्थान सरकार को प्रत्येक पवित्र उपवन (जैसे ओरण, देव वन, रुंध आदि) का मानचित्रण कर उन्हें वन के रूप में वर्गीकृत करने के निर्देश दिए गए थे।
- 1 जून 2005 की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट ने भी पवित्र वनों को वन के रूप में वर्गीकृत करने की सिफारिश की थी।
पवित्र उपवनों को “डीम्ड” वन का दर्जा देने की प्रक्रिया
राजस्थान सरकार को पवित्र वनों को “डीम्ड वन” का दर्जा देने के लिए कई आवेदन मिले थे, लेकिन मामला केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति को भेजा गया।
- जून 2005 की रिपोर्ट में समिति ने राज्य समिति के मानदंडों को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ पाया और पवित्र उपवनों को वनों के रूप में वर्गीकृत करने की सिफारिश की।
- रिपोर्ट में कहा गया कि छोटे और खंडित क्षेत्रों को छोड़कर सभी पवित्र उपवनों को वन संरक्षण (FC) अधिनियम के तहत लाया जाना चाहिए।
राजस्थान की अधूरी सूची
- याचिकाकर्ता ने बताया कि राजस्थान की जिलावार पवित्र उपवनों की सूची अधूरी थी।
- अनुमानित 25,000 पवित्र उपवनों के मुकाबले केवल 5,000 ओरण को ही सूची में शामिल किया गया था।
राजस्थान वन नीति 2023 में स्थानीय समुदायों की भूमिका उपेक्षित
याचिकाकर्ता ने कहा कि राजस्थान वन नीति 2023 में ओरण, देव वन और रुंध के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका, जिम्मेदारियों और अधिकारों को परिभाषित करने वाले प्रावधानों की कमी है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “पवित्र उपवनों का वर्गीकरण उनके आकार या विस्तार पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व पर आधारित होना चाहिए।”
सामुदायिक अधिकारों को सुरक्षित करने वाला फैसला
मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाली पारुल गुप्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह फैसला 2018 के फैसले से आगे का कदम है क्योंकि –
- यह पवित्र उपवनों को वन के रूप में मान्यता देता है।
- सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर सामुदायिक रिजर्व के रूप में पहचान कर स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है।
पवित्र उपवन: सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर
पवित्र उपवन भारतीय समाज में सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर हैं। ये पर्यावरण संतुलन बनाए रखने, जैव विविधता को संरक्षित करने और जल स्रोतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
- पवित्र उपवनों का संरक्षण: देशभर में पवित्र उपवनों की पहचान और संरक्षण में तेजी आएगी।
- स्थानीय समुदायों को अधिकार: पारंपरिक समुदायों को उनकी संरक्षक की भूमिका औपचारिक रूप से दी जाएगी।
- कृषि और वन संरक्षण: इससे वन संसाधनों की रक्षा और स्थानीय जैव विविधता का संरक्षण होगा।
- नीति निर्माण में मदद: केंद्र और राज्य सरकारों को पवित्र उपवनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए प्रभावी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।