भारत के कई बड़े शहरों में कूड़े के ढेर एक गंभीर समस्या बन गए हैं, जिससे हवा, पानी और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दिल्ली जैसे शहर में तीन बड़े लैंडफिल साइट्स – गाज़ीपुर, ओखला और भलस्वा – पर्यावरणीय संकट के रूप में उभर रहे हैं। इन कूड़े के ढेरों से जहरीली गैसें निकलती हैं और कूड़े से बहने वाले जहरीले तरल पदार्थ ज़मीन के पानी को दूषित करते हैं। इससे आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
हालांकि शहरों में इस समस्या पर ध्यान दिया जा रहा है, फिर भी अधिकांश शहरों को अपने लैंडफिल साइट्स के आकार और वहां पड़े कूड़े की मात्रा की सही जानकारी नहीं है। दिल्ली अकेले हर दिन लगभग 11,000 टन ठोस कचरा उत्पन्न करती है, जो इन तीन लैंडफिल साइट्स पर जमा होता रहता है। स्थानीय निकायों ने इस समस्या को सुलझाने के लिए बायोरिमेडिएशन, बायोमाइनिंग, और वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट जैसे कदम उठाए हैं, लेकिन ये उपाय बढ़ते कूड़े के सामने काफी नहीं हैं।
सैटेलाइट इमेजरी और GIS तकनीक से समाधान
अधिकांश शहर अब भी मैन्युअल अनुमान से कूड़े की मात्रा का अंदाज़ा लगाते हैं, जो न केवल लंबी और महंगी प्रक्रिया है, बल्कि कई बार सही भी नहीं होती। इसकी जगह शहर सैटेलाइट इमेजरी और GIS (जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम) तकनीक का उपयोग कर सकते हैं। सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग न केवल कचरे की मात्रा को जल्दी और सटीकता से मापने में सहायक है, बल्कि यह समय के साथ कचरे में होने वाले बदलाव को ट्रैक करने की भी सुविधा देता है।
हमने अपने अध्ययन में दिल्ली के तीनों लैंडफिल साइट्स – गाज़ीपुर, ओखला और भलस्वा – के डेटा को सैटेलाइट इमेजरी की मदद से समझने की कोशिश की। इस अध्ययन में हमने 2013 से 2024 तक के सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया। हमने इन साइट्स की औसत सतह तापमान (LST) में आए बदलावों को भी ट्रैक किया, क्योंकि यह तापमान बढ़ते कचरे के साथ बढ़ता है और जैविक कचरे के सड़ने के कारण अधिक गर्मी उत्पन्न होती है।
अध्ययन के नतीजे
हमारे अध्ययन में पाया गया कि भलस्वा, गाज़ीपुर और ओखला लैंडफिल साइट्स पर पिछले दस सालों में कचरे की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है। भलस्वा का क्षेत्रफल 29.36 हेक्टेयर है और यहां 2013 से 2024 तक कचरे की मात्रा में 88 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी तरह, गाज़ीपुर और ओखला साइट्स पर भी कचरे की मात्रा में क्रमशः लगभग तीन गुना और 52 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
साथ ही, इन साइट्स के औसत तापमान में भी वृद्धि देखी गई है। भलस्वा का औसत तापमान 2013 में 31.39°C से बढ़कर 2024 में 35.89°C हो गया है। ओखला और गाज़ीपुर में भी तापमान में बढ़ोतरी देखी गई, जिससे यह साफ़ है कि बढ़ते कचरे के कारण पर्यावरणीय दबाव भी बढ़ रहा है।
भविष्य के लिए सुझाव
हमारा अध्ययन दिखाता है कि GIS और सैटेलाइट इमेजरी जैसी तकनीकें शहरों के कचरा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। वर्तमान में हमने खुले स्रोत की सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया, जिससे कचरे की माप में 5 प्रतिशत तक का अंतर आया। लेकिन उच्च-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेजरी से यह अंतर 1 प्रतिशत तक कम हो सकता है। हमने अपने अध्ययन में ड्रोन सर्वे का उपयोग भी किया और पाया कि इसके परिणाम GIS आधारित अनुमानों से 97 प्रतिशत तक मेल खाते हैं।
GIS और अन्य तकनीकों का उपयोग कूड़े के वर्तमान स्तर की सटीकता से मापने और भविष्य में संभावित कचरे का अनुमान लगाने में सहायक हो सकता है। इन तकनीकों से शहरों में नए और सुरक्षित लैंडफिल साइट्स को पहचानना, और प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना भी संभव हो सकेगा।