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दिल्ली में पटाखों पर स्थायी प्रतिबंध की तैयारी: जानिए इसके प्रभाव और विशेषज्ञों की राय

by kishanchaubey
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दिल्ली में दीवाली के दौरान हर साल 2017 से पटाखों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है, ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। हाल ही में दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह राजधानी में पटाखों पर स्थायी प्रतिबंध लगाना चाहती है। हालांकि पटाखों का असर सर्दियों में ज्यादा होता है, जब प्रदूषण फैलने में दिक्कत होती है, लेकिन गर्मियों में इसका प्रभाव कम होता है क्योंकि उस समय प्रदूषण के कण तेजी से फैल जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का कदम और विशेषज्ञों की सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रस्ताव पर दिल्ली से सटे राज्यों की राय मांगी है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल पटाखों पर प्रतिबंध लगाने से प्रदूषण को पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए वाहन प्रदूषण, उद्योगों से निकलने वाले धुएं, निर्माण कार्य, पराली जलाना और थर्मल पावर प्लांट जैसे अन्य प्रमुख स्रोतों पर कार्रवाई करना भी जरूरी है।

पटाखों से होने वाले प्रदूषण के स्रोत

पटाखे जलाने पर सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, भारी धातुएं जैसे कैडमियम और लेड के साथ-साथ महीन कण (PM10 और PM2.5) वातावरण में फैलते हैं। इनमें तांबा, मैंगनीज, जिंक, सोडियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे धातु नाइट्रेट और नाइट्राइट रूप में मौजूद होते हैं।
दिल्ली में दीवाली के दौरान वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट देखी गई है। उदाहरण के लिए, बीजिंग में 2006 के लैंटर्न डे फेस्टिवल के दौरान पटाखों से वायु प्रदूषण बढ़ने का मामला दर्ज हुआ, जहां सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और PM10 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

पटाखों का प्रदूषण पर असर: विशेषज्ञों की राय

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के पूर्व प्रमुख दिपांकर साहा के अनुसार, “पटाखों के कारण अचानक से प्रदूषकों का स्तर बढ़ जाता है, खासकर जब हवा स्थिर हो और फैलाव की क्षमता कम हो।” उन्होंने कहा कि यदि मौसम अनुकूल हो, तो पटाखों का प्रभाव कम हो सकता है। उदाहरण के लिए, पिछले दीवाली पर तेज हवा के कारण पटाखों का प्रभाव सीमित रहा।
आईआईटी-दिल्ली के प्रोफेसर मुकेश खरे का कहना है कि पटाखों का प्रदूषण सतह के नजदीक होता है। सर्दियों में कम तापमान और धीमी हवा के कारण ये प्रदूषक न तो ऊंचाई पर जा पाते हैं और न ही दूर तक फैल पाते हैं। इससे नजदीकी इलाकों में रहने वाले लोग अधिक प्रभावित होते हैं।

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अन्य प्रदूषण स्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत

पर्यावरण विशेषज्ञ सुनील दहिया ने पटाखों पर स्थायी प्रतिबंध को “प्रतीकात्मक कदम” बताया, जो यह दर्शाता है कि जलने वाली हर चीज प्रदूषण करती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वाहन प्रदूषण, औद्योगिक धुआं, थर्मल पावर प्लांट, कचरा जलाना और निर्माण से होने वाला धूल जैसे प्रमुख प्रदूषण स्रोतों पर भी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

पटाखों के अन्य नकारात्मक प्रभाव

पटाखों से न केवल हवा बल्कि मिट्टी और भूजल भी प्रदूषित होता है। इनमें मौजूद रसायन जमीन में मिलकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, पटाखों का शोर जानवरों और पक्षियों को भी प्रभावित करता है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि नए साल पर पटाखों की आवाज से पक्षी अपने ठिकानों को छोड़कर लौटकर नहीं आते।
चंद्र भूषण, इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी के सीईओ, ने कहा कि पटाखों से लगने वाली आग से संपत्तियों और घरों को भी नुकसान पहुंचता है।

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