प्रयागराज की ऐतिहासिक धरती पर इस बार महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक हो रहा है। 45 दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक मेले में करीब 45 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है। इस बार महाकुंभ को “डिजिटल महाकुंभ” और “हरित कुंभ” के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन क्या यह दावे वास्तव में धरातल पर नजर आ रहे हैं?
डिजिटल और हरित कुंभ का दावा
महाकुंभ को “डिजिटल” बनाने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया गया है। रियल-टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, और कचरे के प्रबंधन के लिए आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है। इसे “हरित कुंभ” भी कहा जा रहा है, जिसमें कचरे के प्रबंधन और गंगा के पानी की गुणवत्ता बनाए रखने पर जोर दिया गया है।
लेकिन वास्तविकता में ये प्रयास कितने प्रभावी हैं?
एनजीटी ने उठाए सवाल
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने प्रयागराज नगर निगम से पूछा है कि:
- 14 लाख टन पुराना कचरा कहां गया?
- रोजाना निकलने वाले कचरे का प्रबंधन कैसे हो रहा है?
शहर प्रशासन इन सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे सका है।
गंगा की जल गुणवत्ता पर सवाल
पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने NGT में एक याचिका दायर की है, जिसमें गंगा के जल की खराब गुणवत्ता पर चिंता जताई गई है।
- फीकल कॉलिफॉर्म स्तर: संगम क्षेत्र में यह स्तर मानक से कई गुना अधिक है। यह बैक्टीरिया गंगा के पानी को स्नान और पीने के लिए असुरक्षित बनाता है।
- जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD): जनवरी 2025 में संगम पर BOD का स्तर 4 मिलीग्राम/लीटर दर्ज किया गया, जबकि मानक सीमा 3 मिलीग्राम/लीटर है।
2019 अर्धकुंभ से तुलना
2019 के अर्धकुंभ में 13 करोड़ से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय भी पानी में प्रदूषण का स्तर मानक से अधिक पाया गया था।
इस बार स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, क्योंकि श्रद्धालुओं की संख्या 45 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है।
सरकार के प्रयास
सरकार ने इस महाकुंभ को सुचारु रूप से चलाने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं:
- 1.45 लाख शौचालय बनाए गए हैं ताकि खुले में शौच पर रोक लग सके।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट: भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने विशेष तकनीक से सीवेज के प्रबंधन के लिए हाइब्रिड ग्रैन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर (HG-SBR) स्थापित किया है।
- कचरा प्रबंधन: कचरे को अलग-अलग श्रेणियों में बांटकर उसका निपटान किया जा रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण में कमियां
हालांकि सरकार ने “नमामि गंगे” योजना के तहत गंगा की सफाई पर 40,000 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन इसके परिणाम संतोषजनक नहीं हैं। गंगा और यमुना में मरी हुई मछलियां तैरती नजर आ रही हैं।
क्या गंगा इतने बड़े मेले का दबाव सह पाएगी?
45 करोड़ श्रद्धालुओं का स्नान, रहना और अन्य गतिविधियां गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र पर भारी असर डाल सकती हैं।
- गंगा की छोटी धाराओं की सफाई अधूरी है।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास सीवेज ट्रीटमेंट की प्रभावशीलता का कोई ठोस डेटा उपलब्ध नहीं है।