दुनिया के लिए बढ़ता प्लास्टिक कचरा एक गंभीर चुनौती बन चुका है, लेकिन प्रकृति ने इसके खिलाफ एक अनोखा हथियार तैयार किया है – लैंडफिल में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव और उनके एंजाइम्स।
चीनी वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक अध्ययन में खुलासा किया है कि लैंडफिल में मौजूद विशेष एंजाइम्स प्लास्टिक कचरे को नष्ट करने में सक्षम हो सकते हैं। अनुमान के मुताबिक, अगर मौजूदा रफ्तार से प्लास्टिक उत्पादन बढ़ता रहा, तो 2050 तक पर्यावरण में करीब 1,100 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक जमा हो सकता है। ऐसे में ये एंजाइम्स इस संकट से निपटने की उम्मीद जगा रहे हैं।
शोध का आधार और प्रकाशन
यह अध्ययन चीन के अनहुई विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल पीएनएएस नेक्सस में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि एंजाइमेटिक और माइक्रोबियल डिग्रेडेशन प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का एक आशाजनक तरीका हो सकता है। लैंडफिल, जो प्लास्टिक कचरे से भरे होते हैं, बैक्टीरिया के विकास और अनुकूलन के लिए बेहतरीन जगह साबित हो रहे हैं।
तकनीक और खोज
शोधकर्ता लियान सोंग और उनकी टीम ने मेटाजीनोमिक्स और मशीन लर्निंग जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया। मेटाजीनोमिक्स के जरिए विभिन्न वातावरणों जैसे मिट्टी, पानी और लैंडफिल में मौजूद सूक्ष्मजीवों के डीएनए का अध्ययन किया गया।
इस प्रक्रिया में दुनिया भर के लैंडफिल से प्लास्टिक बायोकैटेलिटिक एंजाइम्स एकत्र किए गए। ये प्राकृतिक प्रोटीन प्लास्टिक को सरल पदार्थों में तोड़कर इसके अपघटन को तेज करते हैं, जिससे रीसाइक्लिंग और बायोडिग्रेडेशन संभव हो पाता है।
नमूनों का संग्रह
शोध के लिए नमूने चीन, इटली, कनाडा, ब्रिटेन, जमैका और भारत जैसे देशों से जमा किए गए। इनमें कचरा, लीचेट, कीचड़ और हवा में मौजूद कण शामिल थे। शोधकर्ताओं ने क्लीन (कंट्रास्टिव लर्निंग-इनेबल्ड एंजाइम एनोटेशन) नामक मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग कर 31,989 संभावित प्लास्टिक-नष्ट करने वाले एंजाइम्स की पहचान की।
इसके बाद स्ट्रक्चर मॉडलिंग, सुपरपोजिशन और मेटाजीनोम-असेम्बल्ड जीनोम (एमएजी) रिकंस्ट्रक्शन की मदद से 712 विशेष प्रोटीनों का विश्लेषण किया गया, ताकि उनके कार्यों और सूक्ष्मजीवी मेजबानों को समझा जा सके।
एंजाइम्स की क्षमता और भविष्य
शोधकर्ताओं का कहना है कि इन एंजाइम्स की बहुमुखी क्षमताएं प्लास्टिक कचरे से निपटने के नए रास्ते खोल सकती हैं। हालांकि, इनके कार्यप्रणाली की पुष्टि के लिए और शोध की जरूरत है। वैज्ञानिकों को भरोसा है कि लैंडफिल के बैक्टीरिया प्लास्टिक को तेजी से खत्म करने में मददगार साबित होंगे, जिससे यह प्रदूषण हमेशा के लिए न रहे।
भारत की खोज
कुछ समय पहले भारतीय वैज्ञानिकों ने भी एक फंगस क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम की खोज की थी, जो सिंगल यूज प्लास्टिक को तेजी से नष्ट कर सकता है। भारतीदासन और मद्रास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसकी पहचान माइक्रोप्लास्टिक्स से संक्रमित तैरते मलबे से की थी।
नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, यह फंगस डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग में इस्तेमाल होने वाले पॉलिमर को तेजी से तोड़ने में सक्षम है।
प्लास्टिक संकट के आंकड़े
2022 में वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन 40 करोड़ टन को पार कर गया, जो पिछले साल से 1.6% अधिक है। इसमें से करीब 35 करोड़ टन कचरे के रूप में वापस आ रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2050 तक 2,600 करोड़ मीट्रिक टन नया प्लास्टिक बनेगा, जिसमें से आधा कचरा बन जाएगा।
ओईसीडी की रिपोर्ट ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पॉलिसी सिनेरियोज टू 2060 के अनुसार, 2060 तक प्लास्टिक कचरा तीन गुना बढ़कर 101.4 करोड़ टन से अधिक हो जाएगा।