पार्किंसंस रोग क्या है?
पार्किंसंस रोग एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जिसमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इससे शरीर में डोपामाइन नामक न्यूरोट्रांसमीटर का स्तर घट जाता है, जिससे कंपकंपी, मांसपेशियों में जकड़न और चलने-फिरने में कठिनाई जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों में बीमारी का बढ़ता प्रचलन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, पार्किंसंस रोग के कारण विकलांगता और मृत्यु दर में तेजी से वृद्धि हो रही है। 2019 में इस बीमारी से करीब 85 लाख लोग पीड़ित थे। 2000 से 2019 के बीच इससे होने वाली मौतों में 100% की वृद्धि हुई, और विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (DALY) में 81% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
भारतीय शोधकर्ताओं की नई खोज
मोहाली स्थित नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (INST) के वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए एक विशेष नैनो फॉर्मूलेशन विकसित किया है। यह फॉर्मूलेशन हार्मोन 17 बीटा-एस्ट्राडियोल (E2) के निरंतर स्राव में मदद करता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मस्तिष्क में 17 बीटा-एस्ट्राडियोल की कमी कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की वजह होती है। हालांकि, ई2 हार्मोन के उपयोग में आने वाले साइड इफेक्ट्स और इसके आणविक तंत्र की कम समझ अब तक इसके उपयोग में बाधा डालती रही है।
नैनो फॉर्मूलेशन कैसे काम करता है?
वैज्ञानिकों ने 17 बीटा-एस्ट्राडियोल-लोडेड चिटोसन नैनोकण तैयार किए हैं। ये नैनोकण डोपामाइन रिसेप्टर डी3 (DRD3) के माध्यम से मस्तिष्क में ई2 के निरंतर स्राव को सुनिश्चित करते हैं।
- माइटोकॉन्ड्रियल सुरक्षा: नैनो फॉर्मूलेशन ने कैलपैन के माइटोकॉन्ड्रियल ट्रांसलोकेशन में रुकावट डालकर न्यूरॉन्स को नुकसान से बचाया।
- व्यवहारिक सुधार: यह नैनो तकनीक रोडेंट मॉडल में व्यवहार संबंधी कमियों को भी दूर करने में सफल रही।
- ऑक्सीडेटिव तनाव पर नियंत्रण: यह फॉर्मूलेशन मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करता है, जो पार्किंसंस रोग के मुख्य कारणों में से एक है।
बीएमआई 1 की भूमिका
शोध में पहली बार यह पता चला है कि बीएमआई 1 नामक प्रोटीन, जो माइटोकॉन्ड्रियल होमियोस्टेसिस को नियंत्रित करता है, कैलपैन के द्वारा क्षतिग्रस्त हो सकता है। नैनो फॉर्मूलेशन ने इस क्षति को रोककर बीएमआई 1 को फिर से सक्रिय किया।
पार्किंसंस रोग के लिए नई उम्मीद
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नैनो फॉर्मूलेशन पार्किंसंस रोग के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। ई2 हार्मोन के प्रभावों और इसकी सुरक्षा को लेकर और गहन शोध की जरूरत है, लेकिन यह रोगियों के लिए एक बड़ी उम्मीद बन सकता है।
डब्ल्यूएचओ की सिफारिशें और चुनौतियां
कम और मध्यम आय वाले देशों में पार्किंसंस रोग के इलाज में प्रमुख चुनौतियां हैं, जैसे प्रभावी दवाओं की कमी और इलाज का महंगा होना। इस नैनो फॉर्मूलेशन के आने से इन चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।