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प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एनएमएनएफ योजना

by kishanchaubey
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आजकल संसद में बजट सत्र का दूसरा चरण चल रहा है। इस दौरान प्राकृतिक खेती को लेकर एक सवाल उठा, जिसका जवाब कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में दिया। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने 25 नवंबर 2024 को राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (एनएमएनएफ) को मंजूरी दी है। इस योजना का लक्ष्य देश के 1 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह योजना 15वें वित्त आयोग की अवधि तक चलेगी।

इस योजना के लिए कुल 2481 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर पैसा लगाएंगी। पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्र 90% और राज्य 10% हिस्सा देगा, जबकि बाकी राज्यों के लिए यह अनुपात 60:40 होगा। योजना के नियम 26 दिसंबर 2024 को जारी किए गए। अब तक 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सालाना कार्य योजना को मंजूरी मिल चुकी है। साल 2024-25 में इन राज्यों को 177.78 लाख रुपये दिए गए हैं। प्राकृतिक खेती से मिट्टी की सेहत सुधारने, रसायनों का इस्तेमाल कम करने और पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी।

रेशम उत्पादन से ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बेहतर करना

कपड़ा राज्य मंत्री पाबित्रा मार्गेरिटा ने राज्यसभा में बताया कि सरकार रेशम समग्र-द्वितीय योजना के जरिए रेशम उत्पादन को बढ़ावा दे रही है। इस योजना का बजट 4679.85 करोड़ रुपये है और इसमें 55-60% हिस्सेदारी महिलाओं की है। यह योजना ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देने और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने में मदद कर रही है। केंद्रीय रेशम बोर्ड इस काम को आगे बढ़ा रहा है। रेशम उत्पादन से न सिर्फ कपड़ा उद्योग को फायदा होगा, बल्कि गांवों में रहने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायता मिलेगी।

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कर्नाटक में मिट्टी की सेहत में गिरावट

कृषि मंत्री रामनाथ ठाकुर ने राज्यसभा में बताया कि कर्नाटक की खेती वाली जमीन में मृदा कार्बनिक कार्बन (एसओसी) की कमी हो रही है। इसे ठीक करने के लिए सरकार ने 2014-15 से अब तक 1.77 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) किसानों को दिए हैं। इन कार्ड्स में मिट्टी को बेहतर करने के लिए जैविक खाद, जैव-उर्वरक और जरूरी पोषक तत्वों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है।

कर्नाटक में जागरूकता के लिए 39,021 प्रदर्शन, 4,557 किसान प्रशिक्षण और 164 किसान मेले आयोजित किए गए हैं। इसके अलावा, 2021-22 से कर्नाटक सरकार जैविक कार्बन मिशन चला रही है। इस कार्यक्रम के तहत किसानों को रियायती दर पर हरी खाद के बीज दिए जा रहे हैं, ताकि मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़े और फसल उत्पादन बेहतर हो।

उत्तराखंड में हेपेटाइटिस-सी की स्थिति

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया कि हेपेटाइटिस-सी पानी या मेडिकल लापरवाही से नहीं फैलता। यह एक रक्त से फैलने वाला वायरस है। यह ज्यादातर संक्रमित खून के संपर्क, गंदे इंजेक्शन, नशीली दवाओं के लिए इंजेक्शन और असुरक्षित यौन संबंधों से फैलता है। उत्तराखंड में एसडीएच रुड़की में 16 मरीजों का इलाज चल रहा है। वहीं, गढ़रोना गांव में एक शिविर में 24 लोगों में इसकी पुष्टि हुई। राज्य सरकार इसे नियंत्रित करने के लिए काम कर रही है।

जन्म दर को संतुलित करने के उपाय

अनुप्रिया पटेल ने लोकसभा में बताया कि एनएफएचएस-5 (2019-21) के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.0 हो गई है। यह राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के लक्ष्य के मुताबिक है। सरकार गर्भधारण के सही समय और अंतराल के बारे में जागरूकता फैलाकर, परिवार नियोजन सेवाएं उपलब्ध कराकर और राज्यों की जरूरतों के हिसाब से बजट मंजूर करके प्रजनन दर को संतुलित करने की कोशिश कर रही है। इससे मां और बच्चे की सेहत बेहतर होगी।

करौली-धौलपुर में सिलिकोसिस के मामले

स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रताप जाधव ने लोकसभा में बताया कि राजस्थान के धौलपुर और करौली जिलों की खदानों में सिलिकोसिस का कोई मामला सामने नहीं आया है। खान अधिनियम, 1952 के तहत बीमार श्रमिकों की सुरक्षा के नियम हैं। खदान मालिकों को बीमार मजदूरों को दूसरा काम देने और विकलांगता भत्ता देने की जिम्मेदारी है। सिलिकोसिस धूल भरे माहौल में काम करने से होने वाली बीमारी है, जिसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) में कमी

प्रतापराव जाधव ने लोकसभा में बताया कि महाराष्ट्र में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 208 मामले सामने आए। इसमें से 192 मरीज ठीक होकर घर जा चुके हैं। यह एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें शरीर की नसें कमजोर पड़ जाती हैं। राज्य में इसके मामलों में कमी आई है और सरकार हालात पर नजर रखे हुए है।

दुर्लभ बीमारियों के लिए कदम

जाधव ने बताया कि देश में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित करीब 1000 मरीज उत्कृष्टता केंद्रों (सीओई) में पंजीकृत हैं। इनके इलाज के लिए 2024-25 में 118.82 करोड़ रुपये और 2025-26 में 299.59 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। सरकार इन मरीजों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए प्रतिबद्ध है।

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