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खैर के पेड़ों की अवैध कटाई पर एनजीटी सख्त, पर्यावरण और वन संसाधनों की सुरक्षा पर जोर

by reporter
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नूरपुर, हिमाचल प्रदेश: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर, 21 अगस्त को एक संयुक्त समिति ने नूरपुर वन मंडल के भदरोया वन क्षेत्र में धायला वन में खैर के पेड़ों की अवैध कटाई की जांच की। यह निरीक्षण इंदौरा के एसडीएम सुरिंदर शर्मा की अध्यक्षता में हुआ और इसमें मुखबिर और पर्यावरणविद् दुर्गेश कटोच भी शामिल थे। कटे हुए पेड़ों के ठूंठों की गिनती की गई। दुर्गेश कटोच, जो माहटोली गाँव के निवासी हैं, इस अवैध गतिविधि के खिलाफ लंबे समय से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

कटोच ने वन विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग लगातार हो रही खैर के पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने में असफल रहा है, जिसके चलते उन्होंने 6 अगस्त को एनजीटी में याचिका दायर की। उनके अनुसार, यह अवैध कटाई न केवल वन संसाधनों को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि इस क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रही है।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर खैर के पेड़ों की अवैध कटाई का प्रभाव

खैर के पेड़, जो विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश में पाए जाते हैं, जैव विविधता और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी अवैध कटाई से न केवल वनस्पति पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है:

  1. वनस्पति और जैव विविधता पर प्रभाव:
    खैर के पेड़ मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायक होते हैं और वन्यजीवों को आवास प्रदान करते हैं। इनकी कटाई से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ता है। इससे जंगलों में वनस्पति का क्षरण होता है और पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ता है।
  2. कार्बन सिंक में कमी:
    पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है। खैर के पेड़ों की अवैध कटाई से कार्बन सिंक की क्षमता घटती है, जिससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ता है और जलवायु परिवर्तन की समस्या गंभीर होती जाती है।
  3. मिट्टी और जल संसाधनों पर असर:
    पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव कम होता है। खैर के पेड़ों की कटाई से मिट्टी का कटाव तेजी से होता है, जिससे भूमि की उर्वरता में कमी आती है। इसके अलावा, जल संसाधनों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है, क्योंकि जंगल जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  4. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    वनों की कटाई से प्रदूषण में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप सांस से संबंधित समस्याएं जैसे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की बीमारियां बढ़ जाती हैं। स्वच्छ हवा की कमी के कारण हृदय रोग और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता में गिरावट और पर्यावरणीय प्रदूषण का प्रत्यक्ष संबंध मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है।

दुर्गेश कटोच की अपील

दुर्गेश कटोच ने इस अवैध गतिविधि के खिलाफ आवाज उठाते हुए कहा कि वन विभाग की उदासीनता ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। उन्होंने इस मुद्दे पर पूरी जांच और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उनका कहना है कि खैर के पेड़ों की कटाई पर्यावरण के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरा है। उन्होंने जनता और वन विभाग से आग्रह किया कि वे इस समस्या को हल करने के लिए एकजुट होकर काम करें और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग दें।

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एनजीटी का निर्देश

एनजीटी ने इस मामले में 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, जिसकी अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी। नूरपुर के डीएफओ अमित शर्मा ने पुष्टि की कि इस मामले में जांच जारी है, लेकिन रिपोर्ट को एनजीटी के समक्ष जमा करने तक गोपनीय रखा जाएगा।

यह अवैध कटाई हिमाचल प्रदेश के पर्यावरणीय संपदा के लिए एक गंभीर चुनौती है और इसके स्थायी समाधान की तत्काल आवश्यकता है।

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